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अध्याय - 10 आत्मा अपने स्वरूप से गन्ध को सूंघता है - असुहो सुहो व गंधो ण तं भणदि जिग्घ मं ति सो चेव। ण य एदि विणिग्गहिदुं घाणविसयमागदं गंधं॥
(10-70-377)
अशुभ या शुभ गन्ध तुझको यह नहीं कहता कि 'तू मुझे सूंघ' और आत्मा भी घ्राणेन्द्रिय के विषय में आये हुए गन्ध को ग्रहण करने के लिए नहीं जाता।
Unpleasant or pleasant odour does not beckon you and say, "Smell me.” When the odour reaches your organ of smell, the soul does not move to apprehend the incoming odour.
आत्मा अपने स्वरूप से रस को चखता है -
असुहो सुहो व रसो ण तं भणदि रसय मं ति सो चेव। ण य एदि विणिग्गहिदुं रसणविसयमागदं तु रसं॥
(10-71-378)
अशुभ या शुभ रस तुझे यह नहीं कहता कि 'तू मुझे चख' और आत्मा भी रसना इन्द्रिय के विषय में आये हुए रस को ग्रहण करने के लिए नहीं जाता।
Unpleasant or pleasant flavour does not beckon you and say, “Taste me.” When the flavour reaches your organ of taste, the soul does not move to apprehend the incoming flavour.
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