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अध्याय - 10
आत्मा अपने स्वरूप से शब्द को सुनता है -
असुहो सुहो व सद्दो ण तं भणदि सुणसु मं ति सो चेव। ण य एदि विविग्गहिदुं सोदविसयमागदं सह॥
(10-68-375)
अशुभ या शुभ शब्द तुझे नहीं कहता है कि 'तू मुझको सुन'। वह आत्मा भी श्रोत्र इन्द्रिय के विषय में आये हुए शब्द को ग्रहण करने के लिए नहीं जाता।
Unpleasant or pleasant spoken word does not beckon you and say, “Hear me.” When the word reaches your organ of hearing, the soul does not move to apprehend the incoming word.
आत्मा अपने स्वरूप से रूप को देखता है -
असुहं सुहं व रूवं ण तं भणदि पेंच्छ मं ति सो चेव। ण य एदि विणिग्गहिदुं चक्खुविसयमागदं रूवं॥
(10-69-376)
अशुभ या शुभ रूप तुझको यह नहीं कहता कि 'तू मुझको देख' और आत्मा भी चक्षु इन्द्रिय के विषय में आये हुए रूप को ग्रहण करने के लिए नहीं जाता।
Unpleasant or pleasant visual form does not beckon you and say, "See me.” When the visual form reaches your organ of sight, the soul does not move to apprehend the incoming visual form.
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