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अध्याय -9
चिन्मात्र भाव ही अपने हैं -
को णाम भणेज्ज बुहो णादुं सव्वे पराइए भावे। मज्झमिणं ति य वयणं जाणंतो अप्पयं सुद्ध॥
(9-13-300)
आत्मा को शुद्ध जानता हुआ, शेष सब भावों को पर जानकर कौन बुद्धिमान 'ये भाव मेरे हैं' ऐसे वचन कहेगा।
Knowing the Self to be pure, and all dispositions to be alien, which knowledgeable person will utter these words, "These dispositions belong to me.'?
सापराध और निरपराध आत्मा -
थेयादी अवराहे कुव्वदि जो सो ससंकिदो होदि। मा बज्झे हं केण वि चोरो त्ति जणम्हि वियरंतो॥
__(9-14-301)
जो ण कुणदि अवराहे सो णिस्संको दु जणवदे भमदि। ण वि तस्स बज्झिदुं जे चिंता उप्पज्जदि कया वि॥
(9-15-302)
एवं हि सावराहो बज्झामि अहं तु संकिदो चेदा। जो पुण णिरावराहो णिस्संको हं ण बज्झामि॥
(9-16-303)
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