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अध्याय -9
मैं दृष्टा मात्र हूँ - पण्णाए घेत्तव्वो जो दृट्ठा सो अहं तु णिच्छयदो। अवसेसा जे भावा ते मज्झ परे त्ति णादव्वा॥ (9-11-298)
प्रज्ञा के द्वारा इस प्रकार ग्रहण करना चाहिये कि जो देखने वाला दृष्टा है, निश्चय से वह मैं हूँ; शेष जो भाव हैं, वे मुझसे पर हैं, यह जानना चाहिये।
Through self-discrimination, one must realize that I' is really the ‘seer' who sees; and, further, that all other dispositions are not part of oneself.
मैं ज्ञातामात्र हूँ -
पण्णाए घेत्तव्वो जो णादा सो अहं तु णिच्छयदो। अवसेसा जे भावा ते मज्झ परे त्ति णादव्वा॥ (9-12-299)
प्रज्ञा के द्वारा इस प्रकार ग्रहण करना चाहिये कि जो जानने वाला ज्ञाता है, निश्चय से वह मैं हूँ; शेष जो भाव हैं, वे मुझसे पर हैं, यह जानना चाहिये।
Through self-discrimination, one must realize that 'l' is really the ‘knower' who knows; and, further, that all other dispositions are not part of oneself.
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