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अध्याय -8
रागादि से कर्मबन्ध होता है -
रागम्हि य दोसम्हि य कसायकम्मेसु चेव जे भावा। तेहिं दु परिणमंतो रागादी बंधदे चेदा॥ (8-46-282)
राग, द्वेष और कषाय कर्मरूप (द्रव्यकर्म के उदय) होने पर जो रागादि परिणाम होते हैं, उन रूप परिणमन करता हुआ आत्मा रागादि को बाँधता है। (निष्कर्ष यह है कि कर्म-बन्ध के कारण रागादि भाव होते हैं और रागादि भाव कर्म-बन्ध का कारण हैं।)
On the fruition of material karmas pertaining to attachment, aversion, and passions, the psychic manifestations (like attachment) of the Self cause bondages of karmas. (The inference is that karmic bondages cause dispositions, like attachment; and dispositions, like attachment, cause karmic bondages.)
प्रतिक्रमण का स्वरूप -
अप्पडिकमणं दुविहं अपच्चक्खाणं तहेव विण्णेयं। एदेणुवदेसेण दु अकारगो वण्णिदो चेदा॥ (8-47-283)
अप्पडिकमणं दुविहं दव्वे भावे अपच्चक्खाणं पि। एदेणुवदेसेण दु अकारगो वण्णिदो चेदा॥
वदा।।
(8-48-284)
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