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अध्याय -8
अध्यवसान से पाप, पुण्य का बन्ध - एवमलिये अदत्ते अबंभचेरे परिग्गहे चेव। कीरदि अज्झवसाणं जं तेण दु बज्झदे पावं॥
(8-27-263)
तह वि य सच्चे दत्ते बहे अपरिग्गहत्तणे चेव। कीरदि अज्झवसाणं जं तेण दु बज्झदे पुण्णं॥ (8-28-264)
(8-28-264)
इसी प्रकार (हिंसा के अध्यवसान के समान) असत्य में, चोरी में, अब्रह्मचर्य में और परिग्रह में जो अध्यवसान किया जाता है, उससे पाप का बन्ध होता है।
और इसी प्रकार सत्य में, अचौर्य में, ब्रह्मचर्य में और अपरिग्रह में जो अध्यवसान किया जाता है, उससे पुण्य का बन्ध होता है।
In the same way (like the disposition pertaining to injury or violence), dispositions of involvement in falsehood, stealing, unchastity, and possessions, cause bondage resulting into demerit. And in the same way, dispositions of involvement in truthfulness, non-stealing, celibacy, and renunciation, cause bondage resulting into merit.
बन्ध वस्तु से नहीं होता - वत्थु पडुच्च तं पुण अज्झवसाणं तु होदि जीवाणं। ण हि वत्थुदो दु बंधो अज्झवसाणेण बंधो त्ति। (8-29-265)
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