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अध्याय -8
अज्ञानी और ज्ञानी - जो मण्णदि जीवेमि य जीविस्सामि य परेहि सत्तेहिं। सो मूढो अण्णाणी णाणी एत्तो दु विवरीदो॥ (8-14-250)
जो पुरुष ऐसा मानता है कि मैं परजीवों को जिलाता हूँ और परजीव मुझे जिलाते हैं, वह पुरुष मोही है और अज्ञानी है और जो इससे विपरीत है (जो ऐसा नहीं मानता), वह ज्ञानी है।
The man who believes that he causes other beings to live, and that he lives because of other beings, is under delusion and is ignorant. The man who thinks otherwise is the knower.
आयुकर्म के उदय से ही जीवन है -
आउउदयेण जीवदि जीवो एवं भणंति सव्वण्हू। आउं च ण देसि तुमं कहं तए जीविदं कदं तेसिं॥
(8-15-251)
आउउदयेण जीवदि जीवो एवं भणंति सव्वण्हू। आउं ण देंति तुहं कहं णु ते जीविदं कदं तेहिं॥
(8-16-252)
जीव आयुकर्म के उदय से जीता है, ऐसा सर्वज्ञदेव कहते हैं। तू अन्य जीवों को आयुकर्म नहीं देता, तब तूने उन परजीवों को किस प्रकार जीवित किया।
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