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अध्याय -7
its shell and adopts blackness, it loses its white character. Similarly, the knower also when he, on his own, discards his knowledge-character and dwells into ignorance, it acquires nescience.
ज्ञानी निष्काम कर्म करता है -
पुरिसो जह को वि इहं वित्तिणिमित्तं तु सेवदे रायं। तो सो वि देदि राया विविहे भोगे सुहुप्पादे॥ (7-32-224)
एमेव जीवपुरिसो कम्मरयं सेवदे सुहणिमित्तं। तो सो वि देदि कम्मो विविहे भोगे सुहप्पादे॥ (7-33-225)
जय पुण सोच्चिय पुरिसो वित्तिणिमित्तं ण सेवदे रायं। तो सो ण देदि राया विविहे भोगे सुहुप्पादे॥ (7-34-226)
एमेव सम्मदिट्ठी विसयत्थं सेवदे ण कम्मरयं। तो सो ण देदि कम्मो विविहे भोगे सुहुप्पादे॥ (7-35-227)
(7-35-227)
जिस प्रकार इस लोक में कोई पुरुष आजीविका के लिए राजा की सेवा करता है, तो वह राजा भी उसे सुख देने वाले नाना प्रकार के भोग देता है। इसी प्रकार जीव पुरुष सुख के लिए कर्मरज की सेवा करता है तो वह कर्म भी उसे सुख देने वाले नाना प्रकार के भोग देता है।
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