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अध्याय -7
तह णाणिस्स दु विविहे सच्चित्ताचित्तमिस्सिए दव्वे। भुंजंतस्स वि णाणं ण सक्कमण्णाणदं णेदुं॥
(7-29-221)
जइया स एव संखो सेदसहावं सयं पजहिदूण। गच्छेज्ज किण्हभावं तइया सुक्कत्तणं पजहे॥
(7-30-222)
तह णाणी वि हु जइया णाणसहावं सयं पजहिदूण। अण्णाणेण परिणदो तइया अण्णाणदं गच्छे॥
(7-31-223)
अनेक प्रकार के सचित्त, अचित्त और मिश्रित द्रव्यों का उपभोग करने वाले शंख का श्वेतभाव कृष्ण नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार अनेक प्रकार के सचित्त, अचित्त
और मिश्रित द्रव्यों का उपयोग करते हुए ज्ञानी के ज्ञान को अज्ञानरूप नहीं किया जा सकता।
जब वही शंख अपने श्वेत स्वभाव को स्वयं छोड़कर कृष्णभाव को प्राप्त होता है, तभी वह शुक्लत्व को छोड़ देता है। इसी प्रकार ज्ञानी भी जब अपने ज्ञानस्वभाव को स्वयं छोड़कर अज्ञानरूप परिणमित होता है, तब वह अज्ञानभाव को प्राप्त हो जाता
The whiteness of the shell of a conch, which assimilates all kinds of animate, inanimate and mixed substances, cannot be changed into black; in the same way, the knowledge of the knower, who consumes all kinds of animate, inanimate and mixed substances, cannot be changed into nescience. The same conch, when it, on its own, discards the whiteness of
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