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अध्याय -7
राग पुदगलकर्म है। उसके फलस्वरूप उदय से उत्पन्न यह रागरूप भाव है। यह तो मेरा भाव नहीं है। मै तो एक टंकोत्कीर्ण ज्ञायक भाव हूँ।
Attachment is a physical karmic matter. When it manifests, it gives rise to the emotion of attachment. This is not my true nature. I am just one, the knower.
सम्यग्दृष्टि ज्ञानवैराग्य सम्पन्न होता है -
एवं सम्मादिट्ठी अप्पाणं मुदि जाणगसहावं। उदयं कम्मविवागं च मुयदि तच्चं वियाणंतो॥
(7-8-200)
पूर्वोक्त प्रकार से सम्यग्दृष्टि अपने-आपको (टंकोत्कीर्ण) ज्ञायक स्वभाव जानता है और आत्मतत्त्व को जानता हुआ कर्मोदय के विपाक से उत्पन्न भावों को छोड़ देता
In the aforesaid manner, the right believer knows that he is just the one, the knower, and knowing the true nature of the Self, leaves aside all emotional states caused by the rise of karmas.
रागी जीव सम्यग्दृष्टि नहीं है -
परमाणुमत्तयं पि हु रागादीणं तु विज्जदे जस्स। ण वि सो जाणदि अप्पाणयं तु सव्वागमधरो वि॥
(7-9-201)
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