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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद तलवार की धार पर चलने जैसा दुष्कर है ।" [६५२] -“साँप की तरह एकाग्र दृष्टि से चारित्र धर्म में चलना कठिन है । लोहे के जौ चबाना जैसे दुष्कर है, वैसे ही चारित्र का पालन दुष्कर है ।" [६५३] -"जैसे प्रज्वलित अग्निशिखा को पीना दुष्कर है, वैसे ही युवावस्था में श्रमणधर्म क पालन करना दुष्कर है ।" [६५४] – “जैसे वस्त्र के थैले को हवा से भरना कठिन है, वैसे ही कायरों के द्वारा श्रमणधर्म का पालन भी कठिन होता है ।" [६५५] जैसे मेरुपर्वत को तराजू से तोलना दुष्कर है, वैसे ही निश्ल और निःशंक भाव से श्रमण धर्म का पालन करना दुष्कर है ।" [६५६] –“जैसे भुजाओं से समुद्र को तैरना कठिन है, वैसे ही अनुपशान्त व्यक्ति के द्वारा संयम के सागर को पार करना दुष्कर है ।" [६५७] – “पुत्र ! पहले तू मनुष्य-सम्बन्धी शब्द, रूप आदि पाँच प्रकार के भोगों का भोग कर । पश्चात् भुक्तभोगी होकर धर्म का आचरण करना ।" [६५८] -मृगापुत्र ने माता-पिता को कहा-“आपने जो कहा है, वह ठीक है । किन्तु इस संसार में जिसकी प्यास बुझ चुकी है, उसके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है ।" [६५९] -“मैंने शारीरिक और मानसिक भयंकर वेदनाओं को अनन्त बार सहन किया है । और अनेक बार भयंकर दुःख और भय भी अनुभव किए हैं ।" [६६०] -"मैंने नरक आदि चार गतिरूप अन्त वाले जरा-मरण रूपी भय के आकर कान्तार में भयंकर जन्म-मरणों को सहा है ।" [६६१-६६२] –“जैसे यहाँ अग्नि उष्ण है, उससे अनन्तगुण अधिक दुःखरूप उष्ण वेदना और जैसे यहाँ शीत है, उससे अनन्तगुण अधिक दुःखरूप शीतवेदना मैंने नरक में अनुभव की है ।" [६६३-६६५] -"मैं नरक की कंदु कुम्भियों में ऊपर पैर और नीचा सिर करके प्रज्वलित अग्नि में आक्रन्द करता हुआ अनन्त बार पकाया गया हूँ।" -"महाभयंकर दावाग्नि के तुल्य मरु प्रदेश में तथा वज्रवालुका में और कदम्ब वालुका में मैं अनन्त बार जलाया गया हूँ।" -“बन्धु-बान्धावों से रहित असहाय रोता हुआ मैं कन्दुकुम्भी में ऊँचा बाँधा गया तथा करपत्र और क्रकच आदि शस्त्रों से अनन्त बार छेदा गया हूँ ।" [६६६-६६८] –“अत्यन्त तीखे काँटों से व्याप्त ऊँचे शाल्मलि वृक्ष पर पाश से बाँधकर, इधर-उधर खींचकर मुझे असह्य कष्ट दिया गया ।" - "अति भयानक आक्रन्दन करता हुआ, मैं पापकर्मा अपने कर्मों के कारण, गन्ने की तरह बड़े-बड़े यन्त्रों में अनन्त बार पीला गया हूँ।" - "मैं इधर-उधर भागता और आक्रन्दन करता हुआ, काले तथा चितकबरे सूअर और कुत्तों से अनके बार गिराया गया, फाड़ा गया और छेदा गया ।" [६६९-६७०] –“पाप कर्मों के कारण मैं नरक में जन्म लेकर अलसी के फूलों के समान नीले रंग की तलवारों से, भालों से और लोह के दण्डों से छेदा गया, भेदा गया और खण्ड-खण्ड कर दिया गया ।" - "समिला से युक्त जूएवाले जलते लौह के रथ में पराधीन मैं जोता गया हूँ, चाबुक और रस्सी से हाँका गया हूँ तथा रोझ की भाँति पीट कर भूमि पर
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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