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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद स्वीकार कर संयम में घोर पराक्रमी बने । [४९२-४९४] इस प्रकार वे सब क्रमशः बुद्ध बने, धर्मपरायण बने, जन्म एवं मृत्यु के भय से उद्विग्न हुए, अतएव दुःख के अन्त की खोज में लग गे । जिन्होंने पूर्व जन्म में अनित्य एवं अशरण आदि भावनाओं से अपनी आत्मा को भावित किया था, वे सब राजा, रानी, ब्राह्मण पुरोहित, उसकी पत्नी और उनके दोनों पुत्र वीतराग अर्हत-शासन में मोह को दूर कर थोड़े समय में ही दुःख का अन्त करके मुक्त हो गए । -ऐसा मैं कहता हूँ । (अध्ययन-१५-स-भिक्षुक ) [४९५] "धर्म को स्वीकार कर मुनिभाव का आचरण करूंगा'–उक्त संकल्प से जो ज्ञान दर्शनादि गुणों से युक्त रहता है, जिसका आचरण सरल है, निदानों को छेद दिया है, पूर्व परिचय का त्याग करता है, कामनाओं से मुक्त है, अपनी जाति आदि का परिचय दिए बिना ही जो भिक्षा की गवेषणा करता है और जो अप्रतिबद्ध भाव से विहार करता है, वह भिक्षु है । [४९६] जो राग से उपरत है, संयम में तत्पर है, आश्रव से विरत है, शास्त्रों का ज्ञाता है, आत्मरक्षक एवं प्राज्ञ है, रागद्वेष को पराजित कर सभी को अपने समान देखता है, किसी भी वस्तु में आसक्त नहीं होता है, वह भिक्षु है । [४९७] कठोर वचन एवं वध-को अपने पूर्व-कृत कर्मों का फल जानकर जो धीर मुनि शान्त रहता है, संयम से प्रशस्त है, आश्रव से अपनी आत्मा को गुप्त किया है, आकुलता और हर्षातिरेक से रहित है, समभाव से सब कुछ सहनता है, वह भिक्षु है ।। [४९८] जो साधारण से साधारण आसन और शयन को समभाव से स्वीकार करता है, सर्दी-गर्मी तथा डांस-मच्छर आदि के उपसर्गों में हर्षित और व्यथित नहीं होता है, जो सब कुछ सह लेता है, वह भिक्षु है । [४९९] जो भिक्षु सत्कार, पूजा र वन्दना तक नहीं चाहता है, वह किसी से प्रशंसा की अपेक्षा कैसे करेगा ? जो संयत है, सुव्रती है, और तपस्वी है, निर्मल आचार से युक्त है, आत्मा की खोज में लगा है, वह भिक्षु है । [५००] स्त्री हो या पुरुष, जिसकी संगति से संयमी जीवन छूट जाये और सब ओर से पूर्ण मोह में बंध जाए, तपस्वी उस संगति से दूर रहता है, जो कुतूहल नहीं करता, वह भिक्षु है । [५०१] जो छिन्न, स्वर-विद्या, भौम, अन्तरिक्ष, स्वप्न, लक्षण, दण्ड, वास्तु-विद्या, अंगविकार और स्वर-विज्ञान इन विद्याओं से जो नहीं जीता है, वह भिक्षु है । [५०२] जो रोगादि से पीड़ित होने पर भी मंत्र, मूल आदि विचारणा, वमन, विरेचन, धूम्र पान की नली, स्नान, स्वजनों की शरण और चिकित्सा का त्याग कर अप्रतिबद्ध भाव से विचरण करता है, वह भिक्षु है । [५०३] क्षत्रिय, गण, उग्र, राजपुत्र, ब्राह्मण, भोगिक और सभी प्रकार के शिल्पियों की पूजा तथा प्रशंसा में जो कभी कुछ भी नहीं कहता है, किन्तु इसे हेय जानकर विचरता है, वह भिक्षु है ।
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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