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अनुयोगद्वार-३२२
आत्मसमवतार की अपेक्षा चतुर्भागिका आत्मभाव में और तदुभयसमवतार से अर्धमानिका में समवतीर्ण होती है एवं आत्मभाव में भी । आत्मसमवतार से अर्धमानिका आत्मभाव में एवं तदुभयसमवतार की अपेक्षा मानिका में तथा आत्मभाव में भी समवतीर्ण होती है । यह ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार का वर्णन है । इस तरह नोआगमद्रव्यसमवतार और द्रव्यसमवतार की प्ररूपणा पूर्ण हुई ।
क्षेत्रसमवतार क्या है ? दो प्रकार से है । आत्मसमवतार, तदुभयसमवतार । आत्मसमवतार की अपेक्षा भरतक्षेत्र आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा जम्बूद्वीप में भी रहता है और आत्मभाव में भी रहता है । आत्मसमवतार की अपेक्षा जम्बूद्वीप आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा तिर्यक्लोक में भी समवतरित होता है और आत्मभाव में भी । आत्मसमवतार से तिर्यक्लोक आत्मभाव में समवतीर्ण होता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा लोक में समवतरित होता है और आत्मभाव-निजरूप में भी । कालसमवतार दो प्रकार का है यथा-आत्मसमवतार, तदुभयसमवतार । जैसे-आत्मसमवतार की अपेक्षा समय आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा आवलिका में भी और आत्मभाव में भी रहता है । इसी प्रकार आनप्राण, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, यावत् पल्योपम, सागरोपम ये सभी आत्मसमवतार में आत्मभाव में और तदुभयसमवतार से अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी में भी और आत्मभाव में भी रहते हैं ।
अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा पुद्गलपरावर्तन में भी और आत्मभाव में भी रहता है । पुद्गलपरावर्तनकाल आत्मसमवतार की अपेक्षा निजरूप में रहता है और तदुभयसमवतार से अतीत और अनागत काल में भी एवं आत्मभाव में भी रहता है । अतीत-अनागत काल आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहता है, तदुभयसमवतार की अपेक्षा सर्वाद्धाकाल में भी रहता है और आत्मभाव में भी रहता है ।
__ भावसमवतार क्या है ? दो प्रकार का है । आत्मसमवतार और तदुभयसमवतार । आत्मसमवतार की अपेक्षा क्रोध निजस्वरूप में रहता है और तदुभयसमवतार से मान में और निजस्वरूप में भी समवतीर्ण होता है । इसी प्रकार मान, माया, लोभ, राग, मोहनीय और अष्टकर्म प्रकृतियाँ आत्मसमवतार से आत्मभाव में तथा तदुभयसमवतार से छह प्रकार के भावों में और आत्मभाव में भी रहती हैं । इसी प्रकार छह भाव जीव, जीवास्तिकाय, आत्मसमवतार की अपेक्षा निजस्वरूप में रहते हैं और तदुभयसमवतार की अपेक्षा द्रव्यों में और आत्मभाव में भी रहते हैं । इनकी संग्रहणी गाथा इस प्रकार है
[३२३] क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, मोहनीयकर्म, (कर्म) प्रकृति, भाव, जीव, जीवास्तिकाय और सर्वद्रव्य (आत्मसमवतार से अपने-अपने स्वरूप में और तदुभयसमवतार से पररूप और स्व-स्वरूप में भी रहते हैं)
[३२४] यही भावसमवतार है । __ [३२५] निक्षेप किसे कहते हैं ? निक्षेप के तीन प्रकार हैं । यथा-ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न, सूत्रालापकनिष्पन्न । ओघनिष्पन्ननिक्षेप के चार भेद हैं । उनके नाम हैं-अध्ययन,