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अनुयोगद्वार-३११
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कहते हैं । उसके चार प्रकार हैं । सद् वस्तु को सद् वस्तु की उपमा देना । सद् वस्तु को असद् वस्तु से उपमित करना । असद् वस्तु को सद् वस्तु की उपमा देना । असद् वस्तु को असद् वस्तु की उपमा देना । इनमें से जो सद् वस्तु को सद् वस्तु से उपमित किया जाता है, वह इस प्रकार है-सद्प अरिहंत भगवन्तों के प्रशस्त वक्षस्थल को सद्प श्रेष्ठ नगरों के सत् कपाटों की उपमा देना, जैसे
[३१२] सभी चौबीस जिन-तीर्थंकर प्रधान-उत्तम नगर के कपाटों के समान वक्षस्थल, अर्गला के समान भुजाओं, देवदुन्दुभि या स्तनित के समान स्वर और श्रीवत्स से अंकित वक्षस्थल वाले होते हैं ।
[३१३] विद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना । जैसे नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों की विद्यमान आयु के प्रमाण को अविद्यमान पल्योपम और सागरोपम द्वारा बतलाना ।
[३१४-३१६] अविद्यमान को विद्यमान सद्वस्तु से उपमित करने को असत्-सत् औपम्यसंख्या कहते हैं । सर्व प्रकार से जीर्ण, डंठल से टूटे, वृक्ष से नीचे गिरे हुए, निस्सार और दुःखित ऐसे पत्ते ने वसंत समय प्राप्त नवीन पत्ते से कहा-जीर्ण पीले पत्ते ने नवोद्गत किसलयों कहा-इस समय जैसे तुम हो, हम भी पहले वैसे ही थे तथा इस समय जैसे हम हो रहे हैं, वैसे ही आगे चलकर तुम भी हो जाओगे । यहाँ जो जीर्ण पत्तों और किसलयों के वार्तालाप का उल्लेख किया गया है, वह न तो कभी हुआ है, न होता है और न होगा, किन्तु भव्य जनों के प्रतिबोध के लिये उपमा दी गई है ।
[३१७] अविद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना असद्-असदूप औपम्यसंख्या है । जैसा-खर विषाण है वैसा ही शश विषाण है और जैसा शशविषाण है वैसा ही खरविषाण है ।
परिमाणसंख्या क्या है ? दो प्रकार की है । जैसे–कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या और दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या । कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार की है । पर्यव (पर्याय) संख्या, अक्षरसंख्या, संघातसंख्या, पदसंख्या, पादसंख्या, गाथासंख्या, श्लोकसंख्या, वेढ (वेष्टक) संख्या, नियुक्तिसंख्या, अनुयोगद्वारसंख्या, उद्देशसंख्या, अध्ययनसंख्या, श्रुतस्कन्धसंख्या, अंगसंख्या आदि कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या है । दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या के अनेक प्रकार हैं। यथा-पर्यवसंख्या यावत् अनुयोगद्वारसंख्या, प्राभृतसंख्या, प्राभृतिकासंख्या, प्राभृतप्राभृतिकासंख्या, वस्तुसंख्या और पूर्वसंख्या । इस प्रकार से दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या का स्वरूप जानना।
ज्ञानसंख्या क्या है ? जो जिसको जानता है उसे ज्ञानसंख्या कहते हैं । जैसे किशब्द को जानने वाला शाब्दिक, गणित को जानने वाला गणितज्ञ, निमित्त को जाननेवाला नैमित्तिक, काल को जानने वाला कालज्ञ और वैद्यक को जानने वाला वैद्य । ये इतने हैं, इस रूप में गिनती करने को गणनासंख्या कहते हैं । 'एक', गणना नहीं कहलाता है इसलिये दो से गणना प्रारंभ होती है । वह गणनासंख्या संख्या, असंख्यात और अनन्त, तीन प्रकार की जानना ।
संख्यात क्या है ? तीन प्रकार का है । जघन्य संख्यात, उत्कृष्ट संख्यात और अजघन्य-अनुत्कृष्ट संख्यात । असंख्यात के तीन प्रकार हैं । जैसे-परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात