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________________ २०८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष और एक रलि है । बालुकाप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना दो प्रकार से हैं । भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुप तथा एक रत्नि प्रमाण है । उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रत्नि प्रमाण है । ___पंकप्रभापृथ्वी में भवधारणीय जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रनि प्रमाण है । उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है । धूमप्रभापृथ्वी में भवधारणीय जघन्य (शरीरावगाहना) अंगुल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है । उत्तरक्रिया शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ धनुष प्रमाण है । तमःप्रभापृथ्वी में भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ धनुष प्रमाण है । उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष है । तमस्तमःपृथ्वी के नैरयिकों की शरीरावगाहना दो प्रकार की है-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय रूप । उनमें से भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की है तथा उत्तरवैक्रिय शरीर की जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट १००० धनुष प्रमाण है । भगवन ! असुरकुमार देवों की कितनी शरीरावगाहना है ? दो प्रकार की है, भवधारणीय और उत्तरवैक्रय | भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट सात रनि प्रमाण है । उत्तरवैक्रिय जघन्य अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक लाख योजन प्रमाण है । असुरकुमारों की अवगाहना के अनुरूप ही स्तनितकुमारों पर्यन्त दोनों प्रकार की अवगाहना का प्रमाण जानना । पृथ्वीकायिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी कही है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । इसी प्रकार सामान्य रूप से सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की और (विशेष रूप से) सूक्ष्म अपर्याप्त और पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों की तथा सामान्यतः बादर पृथ्वीकायिकों एवं विशेषतः अपर्याप्त और पर्याप्त पृथ्वीकायिको की यावत् पर्याप्त बादर वायुकायिक जीवों की शरीरावगाहना जानना । वनस्पतिकायिक जीवों की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट कुछ अधिक १००० योजन है। सामान्य रूप में सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और (विशेष रूप में) अपर्याप्त तथा पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमण है । औधिक रूप से बादर वनस्पतिकायिक जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट साधिक १००० योजन प्रमाण है । विशेष-अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । पर्याप्त की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट साधिक १००० योजन प्रमाण होती है । द्वीन्द्रिय जीवों की अवगाहना किनती है ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन प्रमाण है । अपर्याप्त की जघन्य और
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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