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दशवैकालिक-३/-/२४
[२४] आमक सौवर्चल–अपक्क सेंवलनमक, सैन्धव-लवण, रुमा लवण, अपक्क समुद्री नमक, पांशु-क्षार, काल-लवण लेना व खाना ।
[२५] धूपन-धूप देना, वमन, बस्तिकर्म, विरेचन, अंजन, दंतधावन, गात्राभ्यंग मालिश करना और विभूषण-विभूषा करना ।
[२६] 'जो संयम (और तप) में तल्लीन हैं, वायु की तरह लघुभूत होकर विहार करते हैं, तथा जो निर्ग्रन्थ महर्षि हैं, उनके लिए ये सब अनाचीर्ण-अनाचरणीय हैं ।'
[२७] वे निर्ग्रन्थ पांच आश्रवों को परित्याग करने वाले, तीन गुप्तियों से गुप्त, षड्जीवनिकाय के प्रति संयमशील, पांच इन्द्रियों का निग्रह करने वाले, धीर और ऋजुदर्शी होते हैं ।
[२८] (वे) सुसमाहित संयमी ग्रीष्मऋतु में आतापना लेते हैं; हेमन्त ऋतु में अपावृत हो जाते हैं, ओर वर्षाऋतु में प्रतिसंलीन हो जाते हैं ।
[२९] (वे) महिर्ष परीषहरूपी रिपुओं का दमन करते हैं; मोह को प्रकम्पित कर देते हैं और जितेन्द्रिय (होकर) समस्त दुःखों को नष्ट करने के लिए पराक्रम करते हैं ।
[३०] दुष्कर क्रियाओं का आचरण करके तथा दुःसह को सहन कर, उन में से कई देवलोक में जाते हैं और कई नीरज होकर सिद्ध हो जाते हैं ।
[३१] सिद्धिमार्ग को प्राप्त, त्राता (वे निर्ग्रन्थ) संयम और तप के द्वारा पूर्व कर्मों का क्षय करके परिनिर्वृत्त हो जाते हैं । -ऐसा मैं कहता हूँ ।
अध्ययन-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(अध्ययन-४-छह जीवनिकाय) [३२] हे आयुष्मन् ! मैंने सुना हैं, उन भगवान् ने कहा-इस निर्ग्रन्थ-प्रवचन में निश्चित ही षड्जीवनिकाय नामक अध्ययन प्रवेदित, सुआख्यात और सुप्रज्ञप्त है । (इस) धर्मप्रज्ञप्ति (जिसमें धर्म की प्ररूपणा है) अध्ययन का पठन मेरे लिए श्रेयस्कर है । वह षड्जीवनिकाय नामक अध्ययन कौन-सा है, जो काश्यप-गोत्रीय श्रमण भगवान् द्वारा प्रवेदित है, सु-आख्यात और सुप्रज्ञप्त है; जिस धर्मप्रज्ञप्ति-अध्ययन का पठन मेरे लिए श्रेयस्कर है ? वह ‘षड्जीवनिकाय' है, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक जीव ।
शस्त्र-परिणत के सिवाय पृथ्वी सचित्त है, वह अनेक जीवों और पृथक् सत्त्वों वाली है । इसी तरह शस्त्र-परिणत को छोड़ कर अपकाय, अग्निकाय, वायुकाय और वनस्पति सजीव है । वह अनेक जीवों और पृथक् सत्त्वों वाली है । उसके प्रकार ये हैं अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज, स्कन्धबीज, बीजरुह, सम्मूर्छिम तृण और लता । शस्त्र-परिणत के सिवाय (ये) वनस्पतिकायिक जीव बीज-पर्यन्त सचेतन कहे गए हैं । वे अनेक जीव हैं और पृथक् सत्त्वों वाले हैं।
(स्थावरकाय के) अनन्तर ये जो अनेक प्रकार के त्रस प्राणी हैं, वे इस प्रकार हैंअण्डज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, सम्मूर्छिम, उद्भिज्ज (और) औपपातिक । जिन किन्हीं प्राणियों में अभिक्रमण, प्रतिक्रमण, संकुचित होना, प्रसारित होना, शब्द करना, भ्रमण