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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
आजीविका प्राप्त करता है । उसका प्रयत्न व्यर्थ नहीं जाता है । उसे गोधन, पुत्र-पौत्रादि और सन्मित्रों का संयोग मिलता है । वह स्त्रियों का प्रिय होता है । ऋषभस्वरवाला मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है । सेनापतित्व, धन-धान्य, वस्त्र, गंध-सुगंधित पदार्थ, आभूषण-अलंकार, स्त्री, सयनासन आदि भोगसाधनों को प्राप्त करता है । गांधारस्वर वाला श्रेष्ठ आजीविका प्राप्त करता है । वादित्रवृत्ति वाला होता है कलाविदों में श्रेष्ठ है । कवि होता है । प्राज्ञ-चतुर तथा अनेक शास्त्रों में पारंगत होता है मध्यमस्वरभाषी सखजीवी होते है । रुचि के अनरूप खातेपीते और जीते हैं तथा दूसरों को भी खिलाते-पिलाते तथा दान देते हैं । पंचमस्वरवाला व्यक्ति भूपति, शूरवीर, संग्राहक और अनेक गुणों का नायक होता होता है । धैवतस्वरवाला पुरुष कलहप्रिय, शाकुनिक, वागुरिक, शौकरिक और मत्स्यबंधक होता है । निषादस्वर वाला पुरुष चांडाल, वधिक, मुक्केबाज, गोघातक, चोर और इसी प्रकार के दूसरे-दूसरे पाप करने वाला होता है ।
[१८३-१८९] इन सात स्वरों के तीन ग्राम हैं । षड्जग्राम, मध्यमग्राम, गांधारग्राम। पड्जग्राम की सात मूर्च्छनाएँ हैं । मंगी, कौरवीया, हरित्, रजनी, सारकान्ता, सारसी और शुद्धपड्ज । मध्यमग्राम की सात मूर्च्छनाएँ हैं । उत्तरमंदा, रजनी, उत्तरा, उत्तरायता, अश्वक्रान्ता, सौवीरा, अभिरुद्गता । गांधायाम की सात मूर्च्छनाएँ हैं । नन्दी, क्षुद्रिका, पूरिमा, शुद्धगांधारा, उत्तरगांधारा, सुष्टुतर-आयामा और उत्तरायता
[१९०-१९२]-सप्तस्वर कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गीत की योनि क्या है ? इसके उच्छ्वासकाल का समयप्रमाण कितना है ? गीत के कितने आकार होते हैं ? सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं । रुदन गीत की योनि है । पादसम-उतना उसका उच्छ्वासकाल होता है । गीत के तीन आकार होते हैं आदि में मृदु, मध्य में तीव्र और अंत में मंद । इस प्रकार से गीत के तीन आकार जानना ।
[१९३] संगीत के छह दोषों, आठ गुणों, तीन वृत्तों और दो भणितियों को यथावत् जानने वाला सुशिक्षित व्यक्ति रंगमंच पर गायेगा ।
[१९४] गीत के छह दोष हैं-भीतदोष, द्रुतदोष, उत्पिच्छदोष, उत्तालदोष, काकस्वरदोष और अनुनासदोष ।
[१९५] गीत के आठ गुण हैं-पूर्णगुण, रक्तगुण, अलंकृतगुण, व्यक्तगुण, अविघुष्टगुण, मधुरगुण, समगुण, सुललितगुण ।
[१९६] गीत के आठ गुण और भी हैं, उरोविशुद्ध, कंठविशुद्ध, शिरोविशुद्ध, मृदुक, रिभित, पदबद्ध, समतालप्रत्युत्क्षेप और सप्तसवरसीभर
[१९७] (प्रकारान्तर से) सप्तस्वरसीभर की व्याख्या इस प्रकार है-अक्षरसम, पदसम, तालसम, लयसम, ग्रहसम, निश्वसितोच्छ्वसितसम और संचाररसम- इस प्रकार गीत स्वर, तंत्री आदि के साथ संबन्धित होकर सात प्रकार का हो जाता है ।
[१९८] गेय पदों के आठ गुण हैं-निर्दोष, सारवंत, हेतुयुक्त, अलंकृत, उपनीत, सोपचार, मित और मधुर ।
[१९९] गीत के वृत्त-छन्द तीन प्रकार के हैं-सम, अर्धसम और सर्वविषम । इनके अतिरिक्त चौथा प्रकार नहीं है ।