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________________ अनुयोगद्वार - १६१ १९५ पंडितवीर्यलब्धि, बालवीर्यलब्धि, बालपंडितवीर्यलब्धि, क्षायोपशमिकी श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् क्षायोपशमिकी स्पर्शनेन्द्रियलब्धि, क्षायोपशमिक आचारांगधारी, सूत्रकृतांगधारी, स्थानांगधारी, समवायांगधारी, व्याख्याप्रज्ञप्तिधारी, ज्ञाताधर्मकथांगधारी, उपासकदशांगधारी, अन्तकृद्दशांगधारी, अनुत्तरोपपातिकदशांगधारी, प्रश्नव्याकरणधारी, क्षायोपशमिक विपाकश्रुतधारी, क्षायोपशमिक दृष्टिवादधारी, क्षायोपशमिक नवपूर्वधारी यावत् चौदहपूर्वधारी, क्षायोपशमिक गणी, क्षायोपशमिक वाचक | ये सब क्षयोपशमनिष्पन्नभाव हैं । पारिणामिक भाव किसे कहते हैं ? दो प्रकार हैं । सादिपारिणामिक, अनादिपारिणामिक । सादिपारिणामिकभाव क्या है ? अनेक प्रकार हैं । [१६२] जीर्ण सुरा, जीर्ण गुड़, जीर्ण घी, जीर्ण तंदुल, अभ्र, अभ्रवृक्ष, संध्या, गंधर्वनगर । [१६३] उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जना, विद्युत, निर्घात्, यूपक, यक्षादिप्त, धूमिका, महिका, रजोद्धात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, वर्ष, वर्षधर पर्वत, ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पातालकलश, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा, तमस्तमः प्रभा, सौधर्म, ईशान, यावत् आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, ग्रैवेयक, अनुत्तरोपपातिक देवविमान, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी, परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध आसादिपारिणामिकभाव रूप हैं । अनादिपारिणामिकभाव क्या है ? धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धासमय, लोक, अलोक, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, ये अनादि पारिणामिक हैं । सान्निपातिकभाव क्या है ? औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक, इन पांचों भावों के द्विकसंयोग, त्रिकसंयोग, चतुःसंयोग और पंचसंयोग से जो भाव निष्पन्न होते हैं वे सब सान्निपातिकभाव नाम हैं । उनमें से द्विकसंयोगज दस, त्रिकसंयोगज दस, चतुः संयोगज पांच और पंचसंयोगज एक भाव हैं । इस प्रकार सब मिलाकर ये छब्बीस सान्निपातिकभाव हैं । दो-दो के संयोग से निष्पन्न दस भंगों के नाम इस प्रकार हैं--औदयिकऔपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औदयिक- क्षायिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औदयिकक्षायोपसमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औदयिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औपशमिक क्षायिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औपशमिक क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औपशमिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव, क्षायिक क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, क्षायिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव तथा क्षायोपशमिकपारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव । भगवन् ! औदायिक-औपशमिकभाव के संयोग से निष्पन्न भंग क्या है ? औदयिकभाव में मनुष्यगति और औपशमिकभाव में उपशांतकषाय को ग्रहण करने रूप औदयिक - औपशमिकभाव है । औदयिकभाव में मनुष्यगति और क्षायिकभाव में क्षायिक सम्यक्त्व का ग्रहण औदयिकक्षायिकभाव है । औदयिकभाव में मनुष्यगति और क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां जानना । यह औदयिक क्षायोपशमिकभाव का स्वरूप है । औदयिक-पारिणामिकभाव के संयोग से निष्पन्न भंग क्या है ? औदयिकभाव में
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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