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________________ अनुयोगद्वार - १५१ यावत् अनन्तगुणसुरभिगंध, इसी प्रकार दुरभिगंध के विषय में भी कहना । एकगुणतिक्त, द्विगुणतिक्त यावत् अनन्तगुणतिक्त, इसी प्रकार कटुक, कषाय, एवं मधुर रस की पर्यायों के लिये भी कहना । एकगुणकर्कश, द्विगुणकर्कश यावत् अनन्तगुणकर्कश, इसी प्रकार मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष स्पर्श की पर्यायों की वक्तव्यता है । १९३ [१५२-१५८] उस त्रिनाम के पुनः तीन प्रकार हैं । स्त्रीनाम, पुरुषनाम और नपुंसकनाम । इन तीनों प्रकार के नामों का बोध उनके अत्याक्षरों द्वारा होता है । पुरुषनामों के अंत में 'आ, ई, ऊ, ओ' इन चार में से कोई एक वर्ण होता है तथा स्त्रीनामों के अंत में 'ओ' की छोड़कर शेष तीन वर्ण होते हैं । जिन शब्दों के अन्त में अं. इं या उं वर्ण हो, उनको नपुंसकलिंग वाला समझना । अब इन तीनों के उदाहरण कहते हैं । आकारान्त पुरुष नाम का उदाहरण राया है । ईकारान्त का गिरी तथा सिहरी हैं । ऊकारान्त का विण्हू और ओकारान्त का दुम है । स्त्रीनाम में 'माला' यह पद आकारान्त का, सिरी पद ईकारान्त, जम्बू, उकारान्त नारी जाति के उदाहरण हैं । धन्न यह प्राकृतपद अंकारान्त नपुंसक नाम का उदाहरण है । अच्छिं यह इंकारान्त नपुंसकनाम का तथा पीलुं ये उंकारान्त नपुंसकनाम के पद हैं । इस प्रकार यह त्रिनाम का स्वरूप है । [१५९] चतुर्नाम क्या है ? चार प्रकार हैं । आगमनिष्पन्ननाम लोपनिष्पन्ननाम, प्रकृतिनिष्पन्ननाम, विकारनिष्पन्ननाम । आगमनिष्पन्ननाम क्या है ? पद्मानि पयांसि कुण्डानि आदि ये सब आगमनिष्पन्ननाम हैं । लोपनिष्पन्ननाम क्या है ? ते + अत्र - तेऽत्र, पटो+अत्रपटोऽत्र, घटो + अत्र - घटोऽत्र, रथो + अत्र - रथोऽत्र, ये लोपनिष्पन्ननाम हैं । प्रकृतिनिष्पन्ननाम क्या है ? अग्नी एतौ पटू, इमौ शाले एते, माले इमे इत्यादि प्रयोग प्रकृतिनिष्पन्न नाम हैं । विकारनिष्पन्ननाम क्या है ? दण्ड + अग्रं - दण्डाग्रम्, सा+आगता - साऽऽगता, दधि + इदं - दधीदं, नदी+ईहते—नदीहते, मधु+उदक — मधूदकं, बहु + ऊहते - बहूहते, ये सब विकारनिष्पन्ननाम हैं । [१६०] पंचनाम क्या है ? पांच प्रकार का है । नामिक, नैपातिक, आख्यातिक, औपसर्गिक और मिश्र । जैसे 'अश्व' यह नामिकनाम का, 'खलु' नैपातिकनाम का, 'धावति' आख्यातिकनाम का, 'परि' औपसर्गिक और 'संयत' यह मिश्रनाम का उदाहरण है । [१६१] छहनाम क्या है ? छह प्रकार हैं । औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षापोयशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक । औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है । औदयिक और उदयनिष्पन्न । औदयिक क्या है ? ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है । उदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार हैंजीवोदयनिष्पन्न, अजीवोदयनिष्पन्न । जीवोदयनिष्न औदयिकभाव क्या है ? अनेक प्रकार का है । यथा - नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, देव, पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक, क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, कृष्णलेश्यी, नील- कापोत-तेज-पद्मशुक्ललेश्यी, मिथ्यादृष्टि, अविरत, अज्ञानी, आहारक, छद्मस्थ, सयोगी, संसारस्थ, असिद्ध | अजीवोदय निष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? चौदह प्रकार का है । औदारिकशरीर, औदारिकशरीर के व्यापार से परिणामितगृहीत द्रव्य, वैक्रियशरीर, वैयिक्रशरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य, इसी प्रकार, आहारकशरीर और आहारकशरीर के व्यापार से परिणामित द्रव्य, तैजसशरीर और 12 13
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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