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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
कुप्रावचनिक और लोकोत्तर । लौकिक द्रव्यानुज्ञा तीन प्रकार से है-सचित्त, अचित्त और मिश्रा राजा, युवराज आदि जो हाथी वगैरेह के जो देते है वह सचित्त द्रव्यानुज्ञा, आसन-छत्रादि देवे तो वह हुई अचित्त अनुज्ञा और अम्बाडी सहित हाथी या चामर सहित अश्व आदि देवे तो वह हई मिश्र अनुज्ञा ।
ईसी तरह कुप्रावचनिक और लोकोत्तर द्रव्यानुज्ञा के भी सचित्त-अचित्त एवं मीश्र यह तीनो भेद समझ लेना ।
वह क्षेत्रानुज्ञा क्या है ? क्षेत्र का जो अवग्रह देता है वह क्षेत्रानुज्ञा हुई । ईसी तरह काल से दी जाती अनुज्ञा कालानुज्ञा है । भाव से अनुज्ञा के तीन भेद है - लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तर । पहेले दो भेद मैं क्रोधादि भाव आते है और लोकोत्तर में आचार आदि की शीक्षा समाविष्ट होती है ।
[२-४] ऋषभसेन नामक आदिनाथ प्रभु के शिष्यने अनुज्ञा विषयक कथन किया उसका अनुज्ञा, उरीमणी, नमणी...इत्यादि बीस नाम है ।
परिशिष्ठ-२-जोगनन्दी ज्ञान के पांच भेद है-आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल । उसमें चार ज्ञानो की स्थापना, उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा नहीं है । श्रुतज्ञान के उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा के अनुयोग प्रवर्तमान है । यदि श्रुतज्ञान का उद्देश आदि है तो वह अंगप्रविष्ट के है या अंगबाह्य के ? दोनो के उद्देश आदि होते है । जो अंगबाह्य के उद्देश आदि है तो वह कालिक के है या उत्कालिक के ? दोनो के उद्देश आदि है । क्या आवश्यक के उद्देशक आदि है या आवश्यक व्यतिरिक्त के ? दोनो के उद्देश आदि है । आवश्यक में भी सामायिक आदि छह उद्देश-समुद्देश और अनुज्ञा है । अर्थात् “दशवेयालिय से लेकर “महापच्चक्खाण' पर्यंत के उत्कालिक सूत्र और "उत्तरज्झयणं" से लेकर "तेयग्गिनिसग्गाणं" तक के कालिक सूत्रो के उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा प्रर्वत्तमान है । ईसी तरह अंगप्रविष्ट में भी “आयार” से “दृष्टिवाद' तक के सूत्र के उद्देश-समुद्देश और अनुज्ञा होती है ।
क्षमाश्रमण अर्थात् साधु के पास से सूत्र-अर्थ एवं तदुभव के उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा के लिए मैं साधु-साध्वी को सूचित करता हुँ ।
४४ नंदीसूत्र-चूलिका-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण