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________________ उत्तराध्ययन-३२/१२७८ १२७ जिसे पाने के लिए मनुष्य दुःख उठाता है, उसके उपभोग में भी क्लेश और दुःख ही होता है । [१२७९] इस प्रकार रूप के प्रति द्वेष करने वाला भी उत्तरोत्तर अनेक दुःखों की परम्परा को प्राप्त होता है । उपयुक्त चित्त से जिन कर्मों का उपार्जन करता है, वे विपाक के समय में दुःख के कारण बनते हैं । १२८०] रूप में विरक्त मनुष्य शोकरहित होता है । वह संसार में रहता हआ भी लिप्त नहीं होता है, जैसे जलाशय में कमल का पत्ता जल से । [१२८१-१२८२] श्रोत्र का ग्रहण शब्द है । जो शब्द राग में कारण है, उसे मनोज्ञ कहते हैं । जो शब्द द्वेष का कारण है, उसे अमनोज्ञ कहते हैं । श्रोत्र शब्द का ग्राहक है, शब्द श्रोत्र का ग्राह्य है । जो राग का कारण है उसे मनोज्ञ कहते हैं और जो द्वेष का कारण है उसे अमनोज्ञ कहते हैं । [१२८३-१२८४] जो मनोज्ञ शब्दों में तीव्र रूप से आसक्त है, वह रागातुर अकाल में ही विनाश को प्राप्त होता है, जैसे शब्द में अतृप्त मुग्ध हरिण मृत्यु को प्राप्त होता है, जो अमनोज्ञ शब्द के प्रति तीव्र द्वेष करता है, वह उसी क्षण अपने दुर्दान्त द्वेष से दुःखी होता है । इसमें शब्द का कोई अपराध नहीं है ।। [१२८५] जो प्रिय शब्द में एकान्त आसक्त होता है और अप्रिय शब्द में द्वेष करता है, वह अज्ञानी दुःख की पीड़ा को प्राप्त होता है । विरक्त मुनि उनमें लिप्त नहीं होता है । [१२८६] शब्द की आशा का अनुगामी अनेकरूप चराचर जीवों की हिंसा करता है। अपने प्रयोजन को ही मुख्य मानने वाला क्लिष्ट अज्ञानी विविध प्रकार से उन्हें परिताप देता है, पीड़ा पहुँचाता है । [१२८७] शब्द में अनुराग और ममत्व के कारण शब्द के उत्पादन में, संरक्षण में, सन्नियोग में तथा व्यय और वियोग में, उसको सुख कहाँ है ? उसे उपभोग काल में भी तृप्ति नहीं मिलती है । [१२८८] शब्द में अतृप्त तथा परिग्रह में आसक्त और उपसक्त व्यक्ति संतोष को प्राप्त नहीं होता । वह असंतोष के दोष से दुःखी व लोभग्रस्त व्यक्ति दूसरों की वस्तुएँ चुराता है । [१२८९] शब्द और परिग्रह में अतृप्त, तृष्णा से पराजित व्यक्ति दूसरों की वस्तुओं का अपहरण करता है । लोभ के दोष से उसका कपट और झूठ बढ़ता है । कपट और झूठ से भी वह दुःख से मुक्त नहीं होता है । [१२९०] झूठ बोलने के पहले, उसके बाद और बोलने के समय भी वह दुःखी होता है । उसका अन्त भी दुःखमय है । इस प्रकार शब्द में अतृप्त व्यक्ति चोरी करता हआ दुःखी और आश्रयहीन हो जाता है । [१२९१] इस प्रकार शब्द में अनुरक्त व्यक्ति को कहाँ, कब और कितना सख होगा? जिस उपभोग के लिए व्यक्ति दुःख उठाता है, उस उपभोग में भी क्लेश और दुःख ही होता है । [१२९२] इसी प्रकार जो अमनोज्ञ शब्द के प्रति द्वेप करता है, वह उत्तरोत्तर अनेक
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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