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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
गौतम ! किसी भी कालान्तर में भी अब मैं उनके शिष्य या शिष्यणी से अपनाऊँगा नहीं । हे भगवंत ! यदि शायद उस तरह के अक्षर न दे तो ? हे गौतम ! यदि वो उस तरह के अक्षर न लिख दे तो पास के प्रवचनीको कहकर चार-पाँच इकट्ठे होकर उन पर जबरदस्ती करके अक्षर दिलाना । हे भगवंत ! यदि उस तरह के जबरदस्ती से भी वो कुगुरु अक्षर न दे तो फिर क्या करे ? हे गौतम ! यदि उस तरह से कुगुरु अक्षर न दे तो उसे संघ बाहर करने का उपदेश देना। हे गौतम ! किस वजह से ऐसा कहे ?
हे गौतम ! इस संसार में महापाशरूप घर और परिवार की शूली गरदन पर लगी है । वैसी शूली को मुश्किल से तोड़कर कई शारीरिक-मानसिक पेदा हुए वार गतिरूप संसार के दुःख से भयभीत किसी तरह से मोह और मिथ्यात्वादिका क्षयोपशम के प्रभाव से सन्मार्ग की प्राप्ति करके कामभोग से ऊँबकर वैराग पाकर यदि उसकी परम्परा आगे न बढ़े ऐसे निरनुबँधी पुण्य का उपार्जन करते है । वो पुण्योपार्जन तप और संयम के अनुष्ठान से होता है । उसके तप और संयम की क्रिया मे यदि गुरु खुद ही विघ्न करनेवाला बने या दुसरों के पास विघ्न, अंतराय करवाए | अगर विघ्न करनेवाले को अच्छा मानकर उसकी अनुमोदना करे, स्वपक्ष या परपक्ष से विघ्न होता हो उसकी उपेक्षा करे यानि उसको अपने सामर्थ्य से न रोके, तो वो महानुभाग वैसे साधु का विद्यमान ऐसा धर्मवीर्य भी नष्ट हो जाए, जितने में धर्मवीर्य नष्ट हो उतने में पास में जिसका पुण्य आगे आनेवाला था, वो नष्ट होता है । यदि वो श्रमणलिंग का त्याग करता है । तब उस तरह के गुण से युक्त हो उस गच्छ का त्याग करके अन्य गच्छ में जाते है । तब भी यदि वो प्रवेश न पा शके तो शायद वो अविधि से प्राण का त्याग करे, शायद वो मिथ्यात्व भाव पाकर दुसरे कपटी में सामिल हो जाए, शायद स्त्री का संग्रह करके गृहस्थावास में प्रवेश करे, ऐसा एका महातपस्वी था अब वो अतपस्वी होकर पराये के घर में काम करनेवाला दास बने जब तक मे ऐसी हलकी व्यवस्था न हो, उतने में तो एकान्त मिथ्यात्व अंधकार बढ़ने लगे । जितने में मिथ्यात्व से वैसे बने काफी लोगो का समुदाय दुर्गति का निवारण करनेवाला, सुख परम्परा करवानेवाला अहिंसा लक्षणवाला, श्रमणधर्म मुश्किल से करनेवाला होता है । जितने में यह होता है उतने में तीर्थ का विच्छेद होता है इसलिए परमपद मोक्ष का फाँसला काफी बढ़ जाता है यानि मोक्ष काफी दूर चला जाता है । परमपद पाने का मार्ग दूर चला जाता है इसलिए काफी दुःखी ऐसे भव्यात्मा का समूह फिर चारगतिवाले संसार चक्र में अटक जाएंगे । इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि इस तरह से कुगुरु अक्षर नहीं देंगे, उसे संघ बाहर नीकालने का उपदेश देना ।
[१३९१] हे भगवंत ! कितने समय के बाद इस मार्ग में कुगुरु होंगे? हे गौतम ! आज से लेकर १२५० साल से कुछ ज्यादा साल के बाद वैसे कुगुरु होंगे । हे भगवंत ! किस कारण से वो कुगुरुरूप पाएंगे । हे गौतम ! उस समय उस वक्त ऋद्धि, रस और शाता नाम के तीन गारव की साधना करके होनेवाले ममताभाव, अहंकारभाव रूप अग्नि से जिनके अभ्यंतर आत्मा और देह जल रहे है । मैंने यह कार्य किया । मैने शासन की प्रभावना की ऐसे मानसवाले शास्त्र के यथार्थ परमार्थ को न जाननेवाले आचार्य गच्छनायक बनेंगे, इस वजह से वो कुगुरु कहलाएंगे । हे भगवंत ! उस वक्त सर्व क्या उस तरह के गणनायक होंगे? हे गौतम ! एकान्ते सभी वैसे नहीं होंगे । कुछ दुरन्त प्रान्त लक्षणवाले–अधम-न देखने के