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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
परदेशी को, आर्य को, म्लेच्छ को मार डाले या मरवा डाले, उपद्रव करे या उपद्रव करवाए, वो प्रवज्या के लिए अनुचित है । वो पापी है, निंदित है । गर्हणीय है । दुगुंछा करने के लायक है । वो दीक्षा के लिए प्रतिषेधित है । वो आपत्ति है । विघ्न है । अपयश करवानेवाला है । अपकीर्ति हृदयानेवाला है, उन्मार्ग पाया हुआ है, अनाचारी है, राज्य में भी जो दुष्ट हो, ऐसे ही दुसरे किसी व्यसन से पराभवित, अतिसंकिलिष्ट नतीजेवाला हो, और अति क्षुधालु हो, देवादार हो, जाति, कुल, शील और स्वभाव जिसके अनजान हो, कईं व्याधि वेदना से व्याप्त शरीरवाले और रस में लोलुपी हो, कई निद्रा करनेवाले हो, कथा करनेवाले - हँसी क्रीड़ा कंदर्प नाहवाद-स्वामीत्व का भाव हकुम करनेवाला और काफी कुतुहली स्वभाववाला हो, काफी निम्न कक्षा या प्रेष्य जात का हो, मिथ्यादृष्टि या शासन के खिलाफ कुल में पेदा हुआ हो, वैसे किसी को यदि कोई आचार्य, गच्छनायक, गीतार्थ या अंगीतार्थ, आचार्य के गुण युक्त या गच्छ के नायक के गुणयुक्त हो, भावि के आचार्य या भावि के गच्छनायक होनेवाले हो उस (शिष्य) लालच से गारव से दो सौ जोजन भीतर प्रवज्या दे तो वो हे गौतम ! प्रवचन की मर्यादा का उल्लंघन करनेवाला, प्रवचन का विच्छेद करनेवाला, तीर्थ का विच्छेद करनेवाला, संघ का विच्छेद करनेवाला होता है ।
और फिर वो व्यसन से पराभवित समान है, परलोक के नुकशान को न देखनेवाला, अनाचार प्रवर्तक, अकार्य करनेवाला है । वो पापी, अति पापी, महा पापी में भी उच्च है । हे गौतम ! वाकई उसे अभिगृहित, चंड़, रौद्र, क्रुर, मिथ्यादृष्टि समजना ।
[८२५] हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? हे गौतम ! आचार में मोक्षमार्ग है लेकिन अनाचार में मोक्षमार्ग नहीं है । इस कारण से ऐसा कहा जाता है । हे भगवंत ! कौन-से आचार है और कौन-से अनाचार है ? हे गौतम ! प्रभु की आज्ञा के मुताबिक व्यवहार करना वो आचार उसके प्रतिपक्षभूत आज्ञा के अनुसार व्यवहार न करना उसे अनाचार कहते है । उसमें जो आज्ञा के प्रतिपक्षभूत हो वो एकान्त में सर्व तरह से सर्वथा वर्जन के लायक है । और फिर जो आज्ञा के प्रतिपक्षभूत नहीं है वो एकान्त में सर्व तरह से सर्वथा आचरण के योग्य है । और हे गौतम ! यदि कोई ऐसा मिले कि इस श्रमणपन की विराधना करेंगे तो उसका सर्वथा त्याग करना ।
[८२६] हे भगवंत ! उसकी परीक्षा किस तरह करे ? हे गौतम ! जो कोई पुरुष या स्त्री श्रमणपन अंगीकार करने की अभिलाषावाले (इस दीक्षा के कष्ट से) कंपन या ध्रुजने लगे, बैठने लगे, वमन करे, खुद के या दुसरों के समुदाय की आशातना करे, अवर्णवाद बोले, सम्बन्ध करे, उसकी ओर चलने लगे या अवलोकन करे, उनके सामने देखा करे, वेश खींच लेने के लिए हाजिर हो, किसी अशुभ उत्पात या बूरे निमित्त अपसगुन हो, वैसे को गीतार्थ आचार्य, गच्छाधिपति या दुसरे किसी नायक काफी निपुणता से निरूपण करके समजाए कि ऐसे ऐसे निमित्त जिसके लिए हो तो उसे प्रवज्या नहीं दे शकते । यदि शायद प्रवज्या दे तो बड़ा विपरीत आचरण करनेवाला-खिलाफ बनता है । सर्वथा निर्धर्म चास्त्रि को दूषित करता है । वो सभी तरह से एकान्त में अकार्य करने के लिए उद्यत माने जाए । उस तरह का वो चाहे जैसे भी श्रुत या विज्ञान का अभिमान करता है । कई रूप बदलता है ।
[८२७-८३०] हे भगवंत ! वो बहुरुप किसे कहते है ? जो शिथिल आचारवाला हो