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महानिशीथ-५/-1८२२
कदर्थना पहुँचाएंगे परेशान करेंगे तब हे गौतम ! जो कोई वहाँ शीलयुक्त महानुभाव अचलित सत्त्ववाले तपस्वी अणगार होंगे । उनका वज्र जिनके हाथ में है वैसे, ऐरावत हाथी पर बैठकर गमन करनेवाले सौधर्म इन्द्र महाराजा सानिध्य करेंगे ।
उसी तरह हे गौतम ! देवेन्द्र से वंदित प्रत्यक्ष देखे हुए प्रमाणवाला श्री श्रमणसंघ प्राण अर्पण करने के लिए तैयार होते है । लेकिन पाखंड धर्म के लिए तैयार नहीं होते । जितने में हे गौतम ! जिनको एक दुसरे का सहारा नहीं है । अहिंसा लक्षणवाले, क्षमादि दश तरह का जो एक ही धर्म है, अकेले देवाधिदेव अरिहंत भगवंत ही, एक जिनालय, एक वंदनीय, पूजनीय, सत्कार करने के लायक, सन्मान करने के लायक, महायश-महासत्त्ववाले, महानुभाग जिन्हे है ऐसे, दढ़ शील, व्रत, नियम को धारण करनेवाले तपोधन साधु थे । वो साधु चन्द्र समान सौम्य-शीतल लेश्यावाले, सूरज की तरह चमकती तप की तेज राशि समान, पृथ्वी की तरह परिषह-उपसर्ग सहने के लिए समर्थ, मेरु पर्वत की तरह अडोल अहिंसा आदि लक्षणवाले क्षमादि दश तरह के धर्म के लिए रहे, मुनिवर अच्छे श्रमण के समुदाय से परिवरित थे, बादल रहित साफ आकाश हो उसमें शरद पूर्णिमा के निर्मल चन्द्र की तरह कईं ग्रह नक्षत्र से परिवरित हो वैसा ग्रहपति चन्द्र जैसे काफी शोभा पाता है वैसे यह श्रीप्रभ नाम के अणगार गण समुदाय के बीच अधिक शोभा पाते थे । हे गौतम ! यह श्री प्रभ अणगार ने इतने समय तक इस आज्ञा का प्रवेदन किया ।
[८२३-८२४] हे भगवंत ! उसके बाद के काल में क्या हुआ ? हे गौतम ! उसके बाद के काल समय में जो कोई आत्मा छ काय जीव के समारम्भ का त्याग करनेवाला हो, वो धन्य, पूज्य, वंदनीय, नमस्करणीय, सुंदर जीवन जीनेवाले माने जाते है । हे भगवंत ! सामान्य पृच्छा में इस प्रकार यावत् क्या कहना ? हे गौतम ! अपेक्षा से किसी आत्मा उचित है । और (प्रवज्या के लिए) कोई उचित नहीं है । हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहते है ? हे गौतम ! सामान्य से जिनको प्रतिषेध किया हो और जिन्हें प्रतिषेध न किया हो, इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि एक उचित है और एक उचित नहीं है । तो हे भगवंत ! ऐसे कौन-कितने है कि जिन्हें सामान्य तोर पर प्रतिषेध किया है ? और प्रतिषेध नहीं किया है । हे गौतम ! एक ऐसे है कि जो खिलाफ है और एक खिलाफ नहीं है । जो खिलाफ है उसका प्रतिषेध किया जाता है । और जो खिलाफ नहीं है उसका प्रतिषेध नहीं किया जाता। हे भगवंत ! कौन खिलाफ है और कौन नहीं ?
हे गौतम ! जो जिस देश में ढुंगुछा करने के लायक हो, जिन-जिन देश में दुगंछित हो, जिस देश में प्रतिषेध किया हो उस देश में खिलाफ है । जो किसी देश में दुगुंछनीय नहीं है उस देश में प्रतिषेध्य नहीं है उस देश में खिलाफ नहीं है । हे गौतम ! वहाँ, जिस-जिस देश में खिलाफ माना जाता हो तो उसे प्रवज्या मत देना । जो कोई जिस देश में खिलाफ माने जाते हो तो उन्हें प्रवज्या देनी चाहिए । हे भगवंत ! किस देश में कौन खिलाफ और कौन खिलाफ न माना जाए ? हे गौतम ! यदि कोई पुरुष या स्त्री राग से या द्वेष से, पश्चाताप से, क्रोध से, लालच से, श्रमण को, श्रावक को, माता-पिता को, भाई को, बहन को, भाणेज को, पुत्र को, पौत्र को, पुत्री को, भतीजे को, पुत्रवधु को, जमाईराज को, बीवी को भागीदार को गोत्रिय को, सजाति को, विजाति को, स्वजनवाले को, ऋद्धिरहित को, स्वदेशी को,