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पिंडनियुक्ति-६९६
२३९ गर्मी और सामान्य काल की अपेक्षा से आहार लेना, उनकी समज देने के लिए बताया हैकाल
पानी भोजन
वायु काफी शर्दी में एक हिस्सा | चार हिस्से एक हिस्सा मध्यम शर्दी में दो हिस्सा | तीन हिस्से | एक हिस्सा मध्यम गर्मी में दो हिस्सा | तीन हिस्से | एक हिस्सा ज्यादा गर्मी में
तीन हिस्सा | दो हिस्से | एक हिस्सा हमेशा उदर का एक हिस्सा वायु के प्रचार के लिए खाली रखना चाहिए । एक हिस्सा खाली न रहे तो शरीर में दर्द करे ।
जो साधु प्रकाम, निष्काम, प्राणीत, अतिबाहुक और अति बहुश - भक्तपान का आहार करे उसे प्रमाणदोष समजो । प्रकाम - घी आदि न रेलाते आहार के तैतीस नीवाले से ज्यादा खाए । निकाम - घी आदि न रेलाते आहार के बत्तीस से ज्यादा नीवाले एक से ज्यादा खाए । प्रणीत - नीवाला लेने से उसमें से घी आदि नीकलता हो ऐसा आहार लेना। अतिबाहुक - अकरांतीया होकर खाना | अतिबहुश काफी लालच से अतृप्तता से दिन में तीन बार से ज्यादा बार आहार लेना । साधु को भूख से कम आहार खाना चाहिए । यदि ज्यादा आहार खाए तो आत्म विराधना, संयम विराधना, प्रवचन विराधना आदि दोष लगे है ।
[६९७-७०२] अंगार दोष और धूम्रदोष - जैसे अग्नि लकड़े को पूरी प्रकार जला देती है और अंगार बनाती है और आधा जलने से धुंआवाला करता है, ऐसे साधु आहार खाने से आहार के या आहार बनाने वाले की प्रशंसा करे तो उससे राग समान अग्नि से चारित्र समान लकड़े को अंगार समान बनाती है । और यदि उपयोग करते समय आहार की या आहार बनानेवाले की बराई करे तो द्वेष समान अग्नि से चारित्र समान लकड़े धुंआवाले होते है ।
राग से आहार की प्रशंसा करते हुए खाए तो अंगार दोष लगता है । द्वेष से आहार की निंदा करते हए खाए तो धम्रदोष लगता है । इसलिए साध ने आहार खाते समय प्रशंसा या निंदा नहीं करनी चाहिए । आहार जैसा हो ऐसा समभाव से राग-द्वेष किए बिना खाना चाहिए, वो भी कारण हो तो ले वरना न ले ।
[७०३-७१०] आहार करने के छह कारण है । इन छह कारण के अलावा आहार ले तो कारणातिरिक्त नामका दोष लगे । क्षुधा वेदनीय दूर करने के लिए, वैयावच्च सेवा भक्ति करने के लिए, संयम पालन करने के लिए शुभ ध्यान करने के लिए, प्राण टिकाए रखने के लि, इर्यासमिति का पालन करने के लिए । इन छह कारण से साधु आहार काए, लेकिन शरीर का रूप या अँबान के रस के लिए न खाए ।
क्षुधा का निवारण करने के लिए भूख जैसा कोई दर्द नहीं है, इसलिए भूख को दूर करने के लिए आहार खाए, इस शरीर में एक तिल के छिलके जितनी जगह ऐसी नहीं कि जो बाधा न दे । आहार रहित भूखे को सभी दुःख सान्निध्य करते है, यानि भूख लगने पर सभी दुःख आ जाए, इसलिए भूख का निवारण करने के लिए साधु आहार ले । वैयावच्च करने के लिए भूखा साधु अच्छी प्रकार से वैयावच्च न कर शके, इसलिए आचार्य, उपाध्याय, ग्लान, बाल, वृद्ध आदि साधु की वैयावच्च अच्छी प्रकार से कर शके उसके लिए साधु आहार खाए। संयम का पालन करने के लिए, भूखा साधु प्रत्युप्रेक्षणा प्रमार्जना आदि संयम का पालन न कर शके, इसलिए संयम का पालन करने के लिए साधु आहार ले |