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पिंडनियुक्ति-६७०
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आदि दोष लगते है यह समझ लेना ।
गवेपणा और ग्रहण एषणा के दोष बताये । अब ग्रासैषणा के दोष बताते है
[६७१-६७६] ग्रास एषणा के चार निक्षेप है - १. नाम ग्रासैषणा, २. स्थापना ग्रासैपणा, ३. द्रव्य ग्रासैषणा, ४. भाव ग्रासैषणा । द्रव्य ग्रासैषणा में मत्स्य का दृष्टान्त । नाम ग्रासैषणा - ग्रासएषणा ऐसा किसी का नाम होता . स्थापना ग्रासैषणा - ग्रास ऐषणा की कोई आकृति बनाई हो । द्रव्य ग्रासैषणा के तीन भेद है – सचित्त, अचित्त या मिश्र । भाव ग्रासैषणा के दो भेद है - आगम भावग्रासैषणा और नोआगम भाव ग्रासैषणा । आगम भावग्रासैषणा का ज्ञाता एवं उसमें उपयोगवाला नोआगम भाव ग्रासैषणा के दो भेद - प्रशस्त एवं अप्रशस्त । प्रशस्त संयोजनादि पांच दोषयुक्त आहार करना कल्पे ।
द्रव्य ग्रासैषणा का दृष्टांत - कोई एक मच्छीमार मच्छी पकरने सरोवर गया, कांटे में गल मांस का टुकडा पीरोकर सरोवर में डाला । उस सरोवर में एक बुद्धिमान् एवं वृद्ध मत्स्य था । उसने वहां आकर सावधानी से आसपास का मांस खा लिया । पुंछ से कांटा को हिलाकर चला गया । मच्छीमार ने समझा कि मच्छी फँस गई है । कांटा बहार निकाला तो वहां न मच्छी थी न मांस । तीन बार ऐसा ही हुआ । मच्छीमारने सोचा कि ऐसा क्युं होता है ? तब मच्छी ने बताया कि हे मच्छीमार ! सन - एक दफां मैं प्रमाद में था. एक बगले ने मुझे पकडा । बगला भक्ष्य को उछालकर फिर खा जाता है । बगले ने मुझे उंचे उछाला । मैंने सोचा कि यदि मैं उसके मुख में गीरुंगा तो वह मुझे खा जाएगा, इसीलिए में तीर्छा गीरा, इस प्रकार तीन दफां हुआ और मैं भाग नीकला । इक्कीस बार जाल में से बच नीकला । एक दफां तो मच्छीमार के हाथ में आने के बाद भी भाग नीकला । ऐसा मेरा पराक्रम है । तु मुझे पकडना चाहता है ? यह कैसा तुमारा निर्लज्जत्व है ?
इस दृष्टान्त का उपनयन - सार इस प्रकार है । मछलियाँ के स्थान पर साधु, माँस के स्थान पर आहार पानी, णछवारे के स्थान पर रागादि दोष का समूह । जिस प्रकार मछली किसी प्रकार फँसी न हो ऐसे साधु को भी दोष न लगे उस प्रकार से आहार ग्रहण करे, किसी दोप में न फँसे । सोलह उद्गम के, सोलह उत्पादना के और दश एषणा के ४२ दोष रहित आहार पाने के बाद साधु ने आत्मा को शीक्षा देनी चाहिए कि, 'हे जीव ! तुम किसी दोष में नहीं फँसे और बियालीस दोष रहित आहार लाए हो, तो अब लेते समय मूर्छावश होकर रागद्वेष में न फँसो उसका खयाल रखना ।
[६७७-६८३] अप्रशस्त भावग्रासएषणा - उसके पाँच प्रकार है वो इस प्रकार - संयोजना, खाने के दो द्रव्य स्वाद के लिए इकट्ठे करना । प्रमाण - जरुरत से ज्यादा आहार खाना । अंगार - खाते समय आहार की प्रशंसा करना । धूम्र - खाते समय आहार की निंदा करना । कारण - आहार लेने की छह कारण सिवा आहार लेना ।
संयोजना यानि द्रव्य इकट्ठा करना । वो दो प्रकार से द्रव्य इकट्ठा करना और भाव से इकट्ठा करना । द्रव्य से इकट्ठा करना । यो दो प्रकार से बाह्य संयोजना, अभ्यंतर संयोजना । बाह्य संयोजना स्वाद की खातिर दो द्रव्य दूध, दहीं आदि में शक्कर आदि मिलाना | उपाश्रय के बाहर गोचरी के लिए गए हो तो वहाँ दो द्रव्य इकट्ठा करना यानि बाह्य संयोजना । अभ्यंतर संयोजना - उपाश्रय में आकर खाते समय स्वाद की खातिर दो द्रव्य इकट्ठा करना । वो तीन प्रकार से । पात्र में, हाथ मे और मुँह में यानि अभ्यंतर संयोजना । गोचरी के लिए घुमने से देर लगे ऐसा हो तो सोचे कि, 'यदि यहाँ दो द्रव्य इकट्ठे करूँगा तो तो स्वाद बिगड़ जाएगा,