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________________ पिंडनियुक्ति-६७० २३७ आदि दोष लगते है यह समझ लेना । गवेपणा और ग्रहण एषणा के दोष बताये । अब ग्रासैषणा के दोष बताते है [६७१-६७६] ग्रास एषणा के चार निक्षेप है - १. नाम ग्रासैषणा, २. स्थापना ग्रासैपणा, ३. द्रव्य ग्रासैषणा, ४. भाव ग्रासैषणा । द्रव्य ग्रासैषणा में मत्स्य का दृष्टान्त । नाम ग्रासैषणा - ग्रासएषणा ऐसा किसी का नाम होता . स्थापना ग्रासैषणा - ग्रास ऐषणा की कोई आकृति बनाई हो । द्रव्य ग्रासैषणा के तीन भेद है – सचित्त, अचित्त या मिश्र । भाव ग्रासैषणा के दो भेद है - आगम भावग्रासैषणा और नोआगम भाव ग्रासैषणा । आगम भावग्रासैषणा का ज्ञाता एवं उसमें उपयोगवाला नोआगम भाव ग्रासैषणा के दो भेद - प्रशस्त एवं अप्रशस्त । प्रशस्त संयोजनादि पांच दोषयुक्त आहार करना कल्पे । द्रव्य ग्रासैषणा का दृष्टांत - कोई एक मच्छीमार मच्छी पकरने सरोवर गया, कांटे में गल मांस का टुकडा पीरोकर सरोवर में डाला । उस सरोवर में एक बुद्धिमान् एवं वृद्ध मत्स्य था । उसने वहां आकर सावधानी से आसपास का मांस खा लिया । पुंछ से कांटा को हिलाकर चला गया । मच्छीमार ने समझा कि मच्छी फँस गई है । कांटा बहार निकाला तो वहां न मच्छी थी न मांस । तीन बार ऐसा ही हुआ । मच्छीमारने सोचा कि ऐसा क्युं होता है ? तब मच्छी ने बताया कि हे मच्छीमार ! सन - एक दफां मैं प्रमाद में था. एक बगले ने मुझे पकडा । बगला भक्ष्य को उछालकर फिर खा जाता है । बगले ने मुझे उंचे उछाला । मैंने सोचा कि यदि मैं उसके मुख में गीरुंगा तो वह मुझे खा जाएगा, इसीलिए में तीर्छा गीरा, इस प्रकार तीन दफां हुआ और मैं भाग नीकला । इक्कीस बार जाल में से बच नीकला । एक दफां तो मच्छीमार के हाथ में आने के बाद भी भाग नीकला । ऐसा मेरा पराक्रम है । तु मुझे पकडना चाहता है ? यह कैसा तुमारा निर्लज्जत्व है ? इस दृष्टान्त का उपनयन - सार इस प्रकार है । मछलियाँ के स्थान पर साधु, माँस के स्थान पर आहार पानी, णछवारे के स्थान पर रागादि दोष का समूह । जिस प्रकार मछली किसी प्रकार फँसी न हो ऐसे साधु को भी दोष न लगे उस प्रकार से आहार ग्रहण करे, किसी दोप में न फँसे । सोलह उद्गम के, सोलह उत्पादना के और दश एषणा के ४२ दोष रहित आहार पाने के बाद साधु ने आत्मा को शीक्षा देनी चाहिए कि, 'हे जीव ! तुम किसी दोष में नहीं फँसे और बियालीस दोष रहित आहार लाए हो, तो अब लेते समय मूर्छावश होकर रागद्वेष में न फँसो उसका खयाल रखना । [६७७-६८३] अप्रशस्त भावग्रासएषणा - उसके पाँच प्रकार है वो इस प्रकार - संयोजना, खाने के दो द्रव्य स्वाद के लिए इकट्ठे करना । प्रमाण - जरुरत से ज्यादा आहार खाना । अंगार - खाते समय आहार की प्रशंसा करना । धूम्र - खाते समय आहार की निंदा करना । कारण - आहार लेने की छह कारण सिवा आहार लेना । संयोजना यानि द्रव्य इकट्ठा करना । वो दो प्रकार से द्रव्य इकट्ठा करना और भाव से इकट्ठा करना । द्रव्य से इकट्ठा करना । यो दो प्रकार से बाह्य संयोजना, अभ्यंतर संयोजना । बाह्य संयोजना स्वाद की खातिर दो द्रव्य दूध, दहीं आदि में शक्कर आदि मिलाना | उपाश्रय के बाहर गोचरी के लिए गए हो तो वहाँ दो द्रव्य इकट्ठा करना यानि बाह्य संयोजना । अभ्यंतर संयोजना - उपाश्रय में आकर खाते समय स्वाद की खातिर दो द्रव्य इकट्ठा करना । वो तीन प्रकार से । पात्र में, हाथ मे और मुँह में यानि अभ्यंतर संयोजना । गोचरी के लिए घुमने से देर लगे ऐसा हो तो सोचे कि, 'यदि यहाँ दो द्रव्य इकट्ठे करूँगा तो तो स्वाद बिगड़ जाएगा,
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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