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________________ २३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद घेबर आदि बनाकर दूँ कि जिससे उनके शरीर को सहारा मिले, शक्ति मिले । ऐसा सोचकर घेबर आदि बनाकर साधु को दे या कोई दुश्मन साधु का नियम भंग करवाने के इरादे से अनेषणीय बनाकर दे । जान-बुझकर आधाकर्मी आहार आदि दे तो साधु को ऐसा आहार लेना न कल्पे । अनाभोग - अनजाने में साधु को कल्पे नहीं ऐसी चीज दे तो वो लेना न कल्पे । [६४४-६५०] सचित्त, अचित्त और मिश्र एक दुजे में मिलावट करके दिया जाए तो तीन चतुर्भगी होती है । उन हर एक के पहले तीन भाँगा में न कल्पे । चौथे भाँगा में कोई कल्पे, कोई न कल्पे । इसमें भी निक्षिप्त की प्रकार कुल ४३२ भाँगा समज लेना । चीज मिलावट करने में जो मिलावट करनी है और देने की चीज दोनों के मिलकर चार भाँगा होते है और सचित्तमिश्र, सचित्तअचित्त और मिश्र अचित्त पद से तीन चतुर्भगी होती है । पहली चतुर्भंगी - सचित्त चीज में सचित्त चीज मिलाई मिश्र चीज में सचित्त चीज मिलाकर, सचित्त में मिश्र मिलाकर, मिश्र में मिश्र मिलाकर | दुसरी चतुर्भगी - सचित्त चीज में सचित्त चीज मिलाकर, अचित्त चीज में सचित्त चीज मिलाकर, सचित्त चीज में अचित्त चीज मिलाकर अचित्त चीज में अचित्त चीज मिलाकर । तीसरी चतुर्भंगी - मिश्र चीज में मिश्र चीज मिलाकर अचित्त में मिश्र मिलाकर, मिश्र में अचित्त मिलाकर अचित्त चीज में अचित्त चीज मिलाकर । निक्षिप्त की प्रकार सचित्त पृथ्वीकायादि के ३६ भाँगा । सचित्त पृथ्वीकायादि में मिश्र पृथ्वी कायादि के ३६ भाँगा । मिश्र पृथ्वीकायादि में मिश्र पृथ्वीकायादि के ३६ भाँगा । कुल १४४ तीन चतुर्भगी के कुल ४३२ भाँगा होते है । मिलाने में सूखा और आर्द्र हो । वो दोनों मिलकर चतुर्भगी बने और फिर उसमें थोड़ी और ज्यादा उसके सोलह भाँगा होती है । सूखी चीज में सूखी चीज मिलाना, सूखी चीज में आई चीज मिलाना, आई चीज में सूखी चीज मिलाना, सूखी चीज में सूखी चीज मिलाना यहाँ भी हलके भाजन में अचित्त - थोड़ा सूखे में सूखा या थोड़ा सूखे में थोड़ा आर्द्र या थोड़े आर्द्र में थोड़ा सूखा या थोड़ा आर्द्र में थोड़ा आर्द्र मिलाया जाए तो वो चीज साधु को लेना कल्पे । उसके अलावा लैना न कल्पे । सचित्त और मिश्र भाँगा की तो एक भी न कल्पे। और फिर भारी भाजन में मिलाया जाए तो भी न कल्पे । [६५१-६५४] अपरिणत (अचित्त न हो वो) के दो प्रकार । द्रव्य अपरिणत और भाव अपरिणत | वो देनेवाले और लेनेवाले दोनों के रिश्ते से दोनों के दो-दो प्रकार होते है। देनावाले से द्रव्य अपरिणत - अशन आदि अचित्त न बना हो तो पृथ्वीकायादि छह प्रकार से। लेनेवाले से द्रव्य अपरिणत - अचित्त न बना हो पृथ्वीकायादि छह प्रकार से । अपरिणत दृष्टांत - दध में मेलवण डाला हो. उसके बाद जब तक दहीं न बने तब तक वो अपरिणत कहल है । नहीं दूध में नहीं दही में । इस प्रकार पृथ्वीकायादि में अचित्त न बना हो तब तक अपरिणत कहलाता है । यानि दूध, दूधपन से भ्रष्ट होकर दहीपन पाने पर परिणत कहलाता है और दूधपन-अव्यवस्थितपानी-जैसा हो तो अपरिणत कहलाता है । अशन आदि द्रव्य दातार की सत्ता में हो तब देनेवाला का गिना जाए और लेने के बाद लेनेवाले की सत्ता मानी जाए। देनेवाले से भाव अपरिणत - जिस अशनआदि के दो या ज्यादा सम्बन्धी हो और उसमें से एक देता हो और दुसरे की इच्छा न हो वो । लेनेवाले से भाव अपरिणत - जो अशनआदि लेते समय संघाट्टक साधु में से एक साधु को अचित्त या शुद्ध लगता हो और दुसरे
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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