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________________ पिंडनियुक्ति-५०२ २१९ पाँच उपवास, मासक्षमण आदि का प्रभाव, राजा-राजा, प्रधान आदि अधिकारी का माननीय राजादि वल्लभ, बल-सहस्त्र योद्धादि जितना साधु का पराक्रम देखकर या दुसरों से मालूमात करके, गृहस्थ सोचे कि, 'यदि यह साधु को नहीं देंगे तो शाप देंगे, तो घर में किसी को मौत होगी । या विद्या-मंत्र का प्रयोग करेंगे, राजा का वल्लभ होने से हमे नगर के बाहर नीकलवा देंगे, पराक्रमी होने से मारपीट करेंगे । आदि अनर्थ के भय से साधु को आहारादि दे तो उसे क्रोधपिंड़ कहते है । क्रोध से जो आहार ग्रहण किया जाए उसे क्रोधपिंड़ दोष लगता है । [५०३-५११] अपना लब्धिपन या दुसरों से अपनी प्रशंसा सुनकर गर्वित बना हुआ, तूं ही यह काम करने के लिए समर्थ है, ऐसा दुसरे साधु के कहने से उत्साही बने या 'तुमसे कोई काम सिद्ध नहीं होता ।' ऐसा दुसरों के कहने से अपमानीत साधु, अहंकार को वश होकर पिंड़ की गवेषणा करे यानि गृहस्थ को कहे कि, 'दुसरों से प्रार्थना किया गया जो पुरुष सामनेवाले के इच्छित को पूर्ण करने के लिए खुद समर्थ होने के बावजूद भी नहीं देता, वो नालायक पुरुष है ।' आदि वचन के द्वारा गृहस्थ को उत्तेजित करके उनके पास से अशन आदि पाए तो उसे मानपिंड़ कहते है । गिरिपुष्पित नाम के नगर में विजयसिंहसूरिजी परिवार के साथ पधारे थे । एक दिन कुछ तरूण साधु इकट्ठे हुए और आपस में बातें करने लगे । वहाँ एक साधु ने कहा कि, 'बोलो हममें से कौन सुबह में पकाई हुई सेव लाकर दे ? वहाँ गुणचंद्र नाम के एक छोटे साधु ने कहा कि, 'मैं लाकर दूँगा । तब दुसरे साधु ने कहा कि, 'यदि घी गुड़ के साथ हम सबको सेव पूरी न मिले तो क्या काम ? थोड़ी - सी लेकर आए उसमें क्या ? इसलिए सबको मिल शके इतनी लाए तो माने ? यह सुनकर अभिमानी गुणचन्द्र मुनि ने कहा कि, 'अच्छा, तुम्हारी मरजी होगी उतनी लाकर दूँगा ।' ऐसी प्रतिज्ञा करके बड़ा नंदीपात्र लेकर सेव लेने के लिए नीकला । घुमते-घुमते एक परिवार के घर में काफी सेव, घी, गुड़ आदि तैयार देखने को मिला । इसलिए साधु ने वहाँ जाकर कई प्रकार के वचन बोलकर सेव माँगी, लेकिन परिवार की स्त्री सुलोचनाने सेव देने से साफ इन्कार कर दिया और कहा कि, तुम्हें तो थोड़ा सा भी नहीं दूंगी । इसलिए साधु ने मानदशा में आकर कहा कि, मैं तुम्हारे घर से ही यकीनन घी गुड़ के साथ सेव लूँगा । सुलोचना भी गर्व से बोली कि, 'यदि तुम इस सेव में से जरा सी भी सेव पा लोगे तो मेरे नाक पर पिशाब किया ऐसा समजना ।' क्षुल्लक साधु ने सोचा कि, 'यकीनन ऐसा ही करूँगा ।' फिर घर से बाहर नीकलकर किसी को पूछा कि, 'यह किसका घर है ?' उसने कहा कि, 'यह विष्णुमित्र का घर है । विष्णुमित्र कहाँ है ? अभी चौराहे पर होंगे । गुणचन्द्र मुनि चोरा पर पहुंचे और वहाँ जाकर पूछा कि, 'तुममे से विष्णुमित्र कौन है ?' 'तुम्हें उनका क्या काम है ? मुझे उनसे कुछ माँगना है । वो विष्णुमित्र, इन सबका बहनोई जैसा था, इसलिए मजाक में कहा कि वो तो कृपण है, वो तुम्हें कुछ नहीं दे शकेगा, इसलिए हमारे पास जो माँगना हो वो माँगो । विष्णुमित्र को लगा कि, यह तो मेरा नीचा दिखेगा, इसलिए उन सबके सामने साधु को कहा कि, मैं विष्णुमित्र हूँ, तुम्हें जो माँगना हो वो माँगो, यह सभी मजाक में बोलते है वो तुम मत समजना । तब साधु ने कहा कि, 'यदि तुम स्त्री प्रधान छह पुरुष में से एक भी न हो तो मैं माँगू ।' यह सुनकर चौटे पर बैठे दुसरे लोगो ने पूछा कि, 'वो स्त्रीप्रधान छह पुरुष कौन ? जिसमें से एक के लिए तुम ऐसा शक कर रहे हो ? गुणचन्द्र मुनि ने कहा कि, 'सुनो ! उनके
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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