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________________ १६६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद आसपास से खा जाता है, फिर वो गल हिलाता है, इसलिए मछेरा मछली उसमें फँसी हुइ मानकर, उसे बाहर नीकालता है, तो कुछ नहीं होता । इस प्रकार बार-बार वो मछली माँस खा जाती है, लेकिन गल में नहीं फँसती । यह देखकर मछेरा सोच में पड़ जाता है । सोच में पड़े उस मछेरे को मछली कहने लगे कि, एक बार मैं प्रमाद में था वहाँ एक बग ने मुझे पकड़ा । 'बग भक्ष उछालकर फिर नीगल जाता है ।' इसलिए उस बग ने मुझे उछाला इसलिए मैं टेढ़ा होकर उसके मुँह में गिरा । इस प्रकार तीन बार मैं टेढ़ा गिरा इसलिए बग ने मुझे छोड़ दिया । एक दिन मैं सागर में गया, तब मछेरे ने वलयमुख को सादड़ी मछलियाँ पकड़ने के लिए रखी थी । बाढ़ आने पर मछलियाँ उसमें फँस जाए । एक बार मैं उसमें फँस गया । तब सादड़ी के सहारे से बाहर नीकल गया । इस प्रकार मैं तीन बार उसमें से नीकल गया । इक्कीस बार जाल में फँसने से मैं जमीं पर छिप जाता इसलिए बच जाता । एकबार मैं थोड़े से पानी में रहता था, उस समय पानी सूख गया । मछलीयाँ जमीं पर चल नहीं शकती थी, इसलिए उनमें से काफी मछलियाँ मर गई । कुछ जिन्दा थे, उसमें मैं भी जी रहा था । वहाँ एक मछवारा आया और हाथ से पकड़-पकड़कर मछलियाँ सूई में पिरोने लगा तब मुझे हुआ कि, जरुर अब मर जाएंगे 'जब तक बींधा नहीं गया, तब तक किसी उपाय करूँ कि जिससे बच शके' ऐसा सोचकर पिरोइ हुइ मछलियाँ के बीच जाकर वो सूई मुँह से पकड़कर मैं चिपक गया । मछेरे ने देखा कि सभी मछलियाँ पिरोई हुई है, इसलिए वो सूई लेकर मछलियाँ धोने के लिए दुसरे द्रह में गया । इसलिए मैं पानी में चला गया ऐसा मेरा पराक्रम है । तो भी तुम मुझे पकड़ने की उम्मीद रखते हो ? तुम्हारी कैसी बेशर्मी ? इस प्रकार मछली सावधानी से आहार पाती थी । उससे छल नहीं होती थी । वो द्रव्य ग्रास एषणा । [८४६-८४८] इस प्रकार किसी दोष में छल न हो उस प्रकार से निर्दोष आहार- पानी की गवेषणा करके, संयम के निर्वाह के लिए ही आहार खाना । आहार लेने में भी आत्मा कोशीक्षा दी जाए कि हे जीव ! तूं बयांलीस दोष रहित आहार लाया है, तो अब खाने में मूर्च्छावश मत होता, राग-द्वेष मत करना । आहार ज्यादा भी न लेना और कम भी मत लेना । जितने आहार से देह टिका रहता है, उतना ही आहार लेना चाहिए । [८४९-८५०] आगादयोग वहन करनेवाला - अलग उपयोग करे । अमनोज्ञ मांडली के बाहर रखे हो वो अलग उपयोग करे । आत्मार्थिक अपनी लब्धी से लाकर उपयोग करते हो तो अलग उपयोग करे । प्राघुर्णक - अतिथि आए हो उन्हें पहले से ही पूरा दिया जाए तो अलग उपयोग करे । नवदीक्षित अभी उपस्थापना नहीं हुई है । इसलिए अभी गृहस्थवत् हो जिससे उनको अलग दे दे । प्रायश्चित्वाले दोष शुद्धि के लिए प्रायश्चित् करते हो शबल भ्रष्ट चारित्री अलग खाए । बाल, वृद्ध - असहिष्णु होने से अलग खाए । इस प्रकार अलग खाए तो असमुद्दिशक । एवं कोढ़ आदि बिमारी हो तो अलग खाए । [८५१-८५९] आहार उजाले में करना चाहिए । उजाला दो प्रकार का, द्रव्य प्रकाश और भाव प्रकाश । द्रव्य प्रकाश दीपक, रत्न आदि का । भावप्रकाश - सात प्रकार स्थान, दिशा, प्रकाश, भाजन, प्रक्षेप, गुरु, भाव । स्थान मांड़ली में साधु का आने-जाने का मार्ग छोड़कर और गृहस्थ न आते हो ऐसे स्थान में अपने पर्याय के अनुसार बैठकर आहार करना । दिशा - आचार्य भगवंत के सामने, पीछे, पराङ् मुख में न बैठना लेकिन मांडली के अनुसार गुरु से अग्नि या इशान दिशा में बैठकर आहार करना । उजाला उजाला हो, ऐसे - - -
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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