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________________ १६४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद २ हिस्से m x 5 x و به سه به سه به سه هم rom xm x 5 x 5 w 5 w 5 w g स्त्री उष्मावाली होती है । पुरुष शीतोष्ण होते है । उनमें पुरःकर्म, ऊदकार्द्र, सस्निग्ध तीन होते है । उन सबमें सचित्त, अचित्त और मिश्र तीन प्रकार से होते है । पुरःकर्म और उपकार्द्र में भिक्षा ग्रहण न करना । सस्निग्ध में यानि मिश्र और सचित्त पानीवाले हाथ हो उस हाथ में ऊँगली, रेखा और हथेली को आश्रित करके साँत हिस्से करे । उसमें काल और व्यक्ति भेद से नीचे के अनुसार यदि सूखे हुए हो, तो ग्रहण किया जाए । नाम ___ गर्मी में | शर्दी में | वर्षा में तरुण स्त्री के ३ हिस्से मध्यम स्त्री के वृद्धा स्त्री के तरुण पुरुष के मध्यम पुरुष के वृद्ध पुरुष का तरुण नपुंसक मध्यम नपुंसक वृद्ध नपुंसक [७८३-८११] भाव-लौकिक और लोकोत्तर, दोनों में प्रशस्त और अप्रशस्त । लौकिक यानि सामान्य लोगों में प्रचलित । लोकोत्तर यानि श्री जिनेश्वर भगवंत के शासन में प्रचलित। प्रशस्त यानि मोक्षमार्ग में सहायक । अप्रशस्त यानि मोक्षमार्ग में सहायक नहीं । लौकिक दृष्टांत - किसी गाँव में दो भाई अलग-अलग रहते थे । दोनों खेती करके गुजारा करते थे। एक को अच्छी स्त्री थी । दुसरे को बूरी स्त्री थी, जो बूरी स्त्री थी, वो सुबह जल्दी उठकर हाथ, मुँह आदि धोकर अपनी देख-भाल करती थी, लेकिन नौकर आदि की कुछ देख-भाल न करे, और फिर उनके साथ कलह करती थी । इसलिए नौकर आदि सब चले गए । घर में रहा द्रव्य आदि खत्म हो गया । यह लौकिक अप्रशस्त हिस्सा । जब कि दुसरे की स्त्री थी, वो नोकर आदि की देख-भाल रखती, समय पर खाना देती थी । फिर खुद खाती थी। कामकाज करने में प्रेरणा देती । इसलिए नोकर अच्छी प्रकार से काम करते थे काफी फसल उत्पन्न हुइ थी और घर धन-धान्य से समृद्ध हुआ । यह लौकिक प्रशस्त भाव । लोकोत्तर, प्रशस्त, अप्रशस्त - जो साधु संयम के पालन के लिए आहार आदि ग्रहण करते है । लेकिन अपना रूप, बल या देह की पुष्टि के लिए आहार ग्रहण करे, आचार्य आदि की भक्ति न करे। वो ज्ञान, दर्शन, चारित्र का आराधक नहीं हो शकता । यह लोकत्तर अप्रशस्तभाव । बियांलीस दोष से रहित शुद्ध आहार ग्रहण करने के बाद वो आहार देखकर जांच कर लेना । उसमें काँटे, संसक्त आदि हो, तो उसे नीकालकर - परठवी उपाश्रय में आए । (नियुक्ति क्रमांक ७९४७९७ गाथा में गाँव काल भाजन का पर्याप्तपन आदि कथन भी किया है ।) उपाश्रय में प्रवेश करते ही पाँव पूंजकर तीन बार निसीहि कहकर, नमो खमासमणाणं कहकर सिर झुकाकर नमस्कार करे । फिर यदि ठल्ला - मात्रा की शंका हो, तो पात्रा दुसरे को सौंपकर शंका दूर करके काउस्सग करना चाहिए । (मुहपत्ति रजोहरण चोलपट्टक आदि किस प्रकार रखे आदि
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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