________________
१४२
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
बीमारी में दवाई अच्छी प्रकार से दे और मुखिया को बात की हो तो रक्षा करे | गाँव में बड़ा पुरुष हो उसके स्थान में रहे या योग्य वसति में ठहरे । वहाँ रहते दंडक आदि की अपने आचार्य की प्रकार स्थापना करे, इस कारण कारिणक हो तो प्रमाद छोड़कर विचरता है ।
[१८५-१९०] स्थानस्थित (बिना कारण) - गच्छ में सारणा, वारणा, चोयणा, पड़िचोयणा होते है, उससे दुःखी होकर अकेला जाए, तो वो अपनी आत्मा को नुकशान करता है, जैसे सागर में छोटी-बड़ी कईं मछलियाँ होती है वो एक दुसरे को टकरावे हो, तो कोई मछली उस दुःख से दर्द पाकर सुखी होने के लिए अगाध जल में से गहरे जल में जाए तो वो मछली कितनी खुश रह शकती है ? यानि मछवारे की जाल या बगले की चोंच आदि में फँसकर वो मछली जल्द नष्ट होती है ऐसे साधु यदि गच्छ में से ऊँबकर नीकल जाए तो उल्टा साधुता से भ्रष्ट होने में उसे देर नहीं लगती, इसीलिए गच्छ में प्रतिकूलता होने के बावजूद भी गच्छ में ही रहना चाहिए । जो साधु चक्र, स्तूप, प्रतिमा, कल्याणकादिभूमि, संखड़ी आदि के लिए विहार करे । खुद जहाँ रहते हो वो जगह अच्छी न हो या खुद को अच्छा न लगता हो । यानि तो दुसरे अच्छे स्थान हो वहाँ विहार करे । अच्छी अच्छी उपधि, वस्त्र, पात्र और गोचरी अच्छी न मिलती हो तो दुसरी जगह विहार करे । इसे निष्कारण विहार कहते है, लेकिन यदि गीतार्थ साधु सूत्र अर्थ उभय से ज्यादा सम्यग् दर्शन आदि स्थिर करने के लिए विहार करे तो उसे कारणिक विहार कहते है ।।
[१९१-१९९] शास्त्रकारने एक गीतार्थ और दुसरा गीतार्थ निश्रित यानि खुद गीतार्थ न हो लेकिन गीतार्थ की निश्रा में रहा हो, ऐसे दो विहार की अनुज्ञा - अनुमति दी है । अगीतार्थ अकेला विचरण करे या जिसमे सभी साधु अगीतार्थ विचरण कर रहे हो तो वो संयम विराधना, आत्म विराधना और ज्ञानदर्शन चारित्र की विराधना करनेवाला होता है और श्री जिनेश्वर भगवान की आज्ञा का लोप करनेवाला होता है और उससे संसार बढ़ाता है । इस प्रकार विहार करनेवाले - चार प्रकार के है | जयमाना, विहरमाना, अवधानमाना, आहिंड़का, जयमाना, तीन प्रकार से-ज्ञान में बेचैन दर्शन में बेचैन, चारित्र में बेचैन । विहरमाना - दो प्रकार से । गच्छगता, गच्छनिर्गता, प्रत्येक बुद्ध-जाति स्मरण या किसी दुसरे निमित्त से बोध पाकर साधु बने हुए - जिन कल्प अपनाए हुए प्रतिमाधारी - साधु की बारह प्रतिमा का वहन करनेवाले । अवधावमान - दो प्रकार से, लिंग से विहार से । लिंग से - साधु का वेश रखके भी गृहस्थ बने हुए । विहार • पार्श्वस्थ कुशील आदि होनेवाले । आहिंडका - दो प्रकार से उपदेश - आहिंड़का, अनुपदेश आहिंड़का । उपदेश आहिंड़का आज्ञा के अनुसार विहार करनेवाले । अनुपदेश आहिड़का - बिना कारण विचरण करनेवाले । स्तूप आदि देखने के लिए विहार करनेवाले ।
२००-२१९] मासकल्प या बारिस की मौसम पूर्ण होने पर, दुसरे क्षेत्र में जाना हो तब क्षेत्र प्रत्युप्रेक्षक आ जाने के बाद आचार्य सभी साधुओ को इकट्ठा करे और पूछे कि, 'किसे कौन-सा क्षेत्र ठीक लगा ?' सबका मत लेकर सूत्र अर्थ की हानि न हो उस प्रकार से विहार करे | चारों दिशा शुद्ध हो (अनुकूल हो) तो चार दिशा में, तीन दिशा शुद्ध हो तो तीन दिशा में, दो दिशा शुद्ध हो तो दो दिशा में, साँत-साँत, पाँच-पाँच या तीन-तीन साधु को विहार करवाए । जिस क्षेत्र में जाना हो वो क्षेत्र कैसा है वो पहले से पता कर लेना चाहिए । फिर विहार करना चाहिए । यदि जांच किए बिना उस क्षेत्र में जाए तो शायद उतरने