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ओघनियुक्ति - १७१
अशुद्ध हो तो भी वसति में जाना और गुरु की परीक्षा लेना क्योंकि शायद वो साधु गुरु की मनाइ होने के बावजूद ऐसा आचरण कर रहे हो । बाह्य परीक्षा में शुद्ध हो, फिर भी अभ्यंतर परीक्षा लेना । अभ्यंतर द्रव्य, परीक्षा भिक्षा आदि के लिए बाहर गए हो, वहाँ किसी गृहस्थ आदि निमित्त आदि पूछे तो वो न बताए, अशुद्ध आहार आदि का निषेध कर रहा हो और शुद्ध आहार ग्रहण कर रहा हो, वेश्या दासी आदि के स्थान के पास रहता न हो, तो ऐसे साधु को शुद्ध मानना चाहिए । उपाश्रय के भीतर शेषकाल में पीठफलक आदि का उपयोग न कर रहे हो, मात्रु आदि गृहस्थ से अलग करते हो, श्लेष्म आदि भस्मवाली कूंड़ में डाले तो उसे शुद्ध मानना | अभ्यंतर भाव परीक्षा कामोत्तेजक गीत गा रहे हो या कथा कर रहे हो, पासा कोड़ी आदि खेल रहे हो तो उसे अशुद्ध समजना । गुण से युक्त समनोज्ञ साधु के साथ रहना, ऐसे न हो तो अमनोज्ञ साधु के साथ रहना । उपाश्रय में प्रवेश करके उपकरण एक ओर रखकर वंदन आदि करके स्थापना आदि कुल पूछकर फिर गोचरी के लिए जाए ।
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[१७२-१७८] वसतिद्वार - संविज्ञ समनोज्ञ साधु के साथ वसति ढूँढ़ना, ऐसी न हो तो, नित्यवासी, अमनोज्ञ पार्श्वस्थ आदि वहाँ रहे हो तो, उनके साथ न बँसते हुए, उन्हें बताकर अलग स्थान में यानि स्त्री रहित श्रावक के घर में रहना । ऐसा न हो तो स्त्री रहित भद्रक के घर में रहना । ऐसा न हो तो स्त्री रहित भद्रक के घर में अलग कमरा या ड़ेली में रहना, ऐसा न हो तो स्त्री सहित भद्रक के घर में बीच में पर्दा आदि करके रहना । ऐसा भी न हो तो बील आदि रहित, मजबूत और दरवज्जेवाले शून्य गृह में रहना और अपनी देखभाल रखने के लिए नित्यवासी आदि को बताए । शून्यगृह भी न हो तो उपर्युक्त कालचारि नित्यवासी पार्श्वस्थादि रहे हो वहाँ उन्होंने इस्तेमाल न किया हो ऐसे प्रदेश में रहे, उपधि आदि अपने पास रखकर प्रतिक्रमण आदि क्रिया करके कायोत्सर्ग आदि करे । यदि जगने की शक्ति न हो तो यतनापूर्वक सोए, ऐसी जगह भी न हो तो यथाछंद आदि की वसति का भी इस्तेमाल करे । उसकी विशेष विधि यह है वो झूठी प्ररूपणा कर रहा हो, उसका व्याघात करे, यदि व्याघात करने में समर्थ न हो तो ध्यान करे, ध्यान न कर शके तो ऊँचाइ से पढ़ना शुरू कर दे, पढ़ न शके तो अपने कान में ऊँगली डालना, इसलिए सामनेवाले को लगे कि यह नहीं सुन शकेगा इसलिए उसकी धर्मकथा बंध करे, नासकोरा आदि की ज्यादा आवाज करके सोने का दिखावा करे, जिससे वो त्रस्त हो जाए, ऐसा न हो तो, अपने उपकरण पास रखकर यतनापूर्वक सो जाए ।
[१७९-१८४] स्थानस्थित ( कारण से) विहार करते हुए वर्षाकाल आ जाए, जिस रास्ते पर जाना हो उस गाँव में अशिव आदि का उपद्रव हो, अकाल को, नदी में बाढ़ आइ हो । दुसरे रास्ते से जाने के लिए समर्थ हो तो उस रास्ते से घुमकर जाए । वरना जब तक उपद्रव आदि की शान्ति न हो तब तक उस बीच के गाँव में रूके । रास्ते में पता चले कि जिस काम के लिए जिस आचार्य के पास जाने के लिए नीकला था, वो आचार्य उस गाँव में से विहार कर चूके है । तो जब तक वो आचार्य किस गाँव में गए है, वो मालूम न हो तब तक उस गाँव में ठहरे और पता चले तब उस ओर विहार करे । वो आचार्य महाराज का कालधर्म होने का सुनाइ दे, तो जब तक पूरे समाचार न मिले तब तक बीच के गाँव में ठहर जाए । खुद ही बीमार हो जाए तो ठहर जाए । गाँव में ठहरने से पहले गाँव में वैद्य को और गाँव के स्वामी (मुखिया) को बात करके रूके । क्योंकि वैद्य को बात की हो तो