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________________ ओघनियुक्ति-१३७ १३९ [१३७-१५४] श्रावकद्वार प्लान के लिए रास्ते में ठहरे, लेकिन भिक्षा के लिए विहार में विलम्ब न करना । उसके द्वार - गोकुल, गाँव, संखड़ी, संज्ञी, दान, भद्रक, महानिनाद । इन सबके कारण से जाने में विलम्ब हो । गोकुल - रास्ते में जाते समय गोकुल आए तब दूध आदि का इस्तेमाल करके तुरन्त चलना पड़े तो रास्ते में ठल्ला आदि बने इसलिए संयम विराधना हो ओर शंका रोक ले तो मरण हो । इसलिए गोकुल में भिक्षा के लिए न जाना । गाँव गाँव- गाँव समृद्ध हो उसमें भिक्षा का समय न हुआ हो, इसलिए दूध आदि ग्रहण करे तो टल्ला आदि के दोष हो । संखडी - समय न हो तो इन्तजार न करे उसमे स्त्री आदि के संघट्टादि दोष हो, समय होने पर आहार लाकर काफी उपयोग करे तो बिमारी आए । ठल्ला आदि हो उसमें आत्म विराधना-संयम विराधना हो । विहार में देर लगे । संझी (श्रावक) जबरदस्ती करे, गोचरी का समय न हुआ हो तो दूध आदि ग्रहण करे, उसमें ठल्ला आदि के दोष हो । दान श्रावकघी आदि ज्यादा वहोराए, यदि उपयोग करे तो बिमारी, ठल्ला आदि के दोष हो । परठवे तो संयमविराधना । भद्रक - कोइ स्वभाव से साधु को ओर भाववाला भद्रक हो, उसके पास जाने में देर करे, फिर वो लड्डू आदि वहोराए, वो खाए तो बिमारी ठल्ला आदि दोष हो । परठवे तो संयम विराधना । महानिनाद : ( वसतिवाले, प्रसिद्ध घर) वहाँ जाने के लिए गोचरी का समय न हुआ हो तो इन्तजार करे । समय होने पर ऐसे घर में जाए, वहाँ से स्निग्ध आहार मिले तो खाए, उसमें ऊपर के अनुसार दोष हो । उसी प्रकार मार्ग में अनुकूल गोकुल, गाँव, जमण, उत्सव रिश्तेदार आदि श्रावक घरो में भिक्षा के लिए घुमने से होनेवाला गमन - विघात आदि दोष बताए, वहाँ से स्निग्ध अच्छा अच्छा लाकर ज्यादा आहार लिया हो तो नींद आए। सो जाए तो सूत्र और अर्थ का पाठ न हो शके, इससे सूत्र और अर्थ, विस्मरण हो जाए, सोए नहीं तो अजीर्ण हो, बिमारी आए । - इन सभी दोष से बचने के लिए रास्ते में आनेवाले गोकुल आदि में से छांछ, चावल ग्रहण करे । तो ऊपर के ग्लानत्वादि और आज्ञा भंग आदि दोष का त्याग माना जाता है । खुद, जिस गाँव के पास आया, उस गाँव में भिक्षा का समय न हुआ हो और दूसरा गाँव दूर हो या पास ही में रहा गाँव नया बँसाया हो, खाली हो गया हो, सिपाही आए हो, प्रत्यनीक हो तो इस कारण से गाँव के बाहर भी इन्तजार करे । भिक्षा का समय होने पर ऊपर बताए · गाँव गोकुल संखडी श्रावक आदि के वहाँ जाकर दूध आदि लाकर रखकर आगे विहार करे । तपे हुए लोहे पर जैसे पानी आदि का क्षय हो जाता है उसी प्रकार साधु का रूक्ष स्वभाव होने से उनकी तासीर में घी-दूध आदि क्षीण हो जाते है । इसके अनुसार कारण से दोष गुण समान होते है । अब गाँव में जाने के बाद पता चलता है कि, 'अभी तक भिक्षा का समय नहीं हुआ ।' तो वहाँ किसका इन्तजार करे और उद्गम आदि दोष की जांच करे, गृहस्थ हो तो आगे जाए और देवकुल आदि शून्यगृह आदि में जहाँ गृहस्थ आदि न हो, वहाँ जाकर गोचरी करे । शून्यग्रह में प्रवेश करने से पहले लकड़ी थपथपाए, खाँसी खाए, जिससे शायद कोइ भीतरी हो तो बाहर नीकल जाए, फिर भीतर जाकर इरियावही करके, गोचरी करे । [१५५ - १६१] गोचरी करते हुए शायद भीतर से किसी गृहस्थ आ जाए तो बिना डरे यह तुम्हारा पिंड़ स्वाहा, यह यम पिंड़ यह वरुण पिंड़ आदि बोलने लगे पिशाच ने ग्रहण किया हो ऐसा मुँह बनाए । इसलिए वो आदमी भयभीत होकर वहाँ से नीकल जाए । शायद कोइ
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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