SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - हिन्दी अनुवाद आगमसूत्र १३८ उस प्रकार सबकुछ कहे । साधु को रूकना पड़े ऐसा हो तो दुसरे उपाश्रय में रूक जाए । साध्वी को अच्छा हो तब विहार करे । शायद साध्वी अकेली हो, बिमार हो और दुसरे उपाश्रय में रहकर बरदास्त हो शके ऐसा न हो तो उसी जगह में बीच में परदा रखे फिर शुश्रूषा करे। अच्छा होने पर यदि वो साध्वी निष्कारण अकेली हुइ हो तो ठपका देकर गच्छ में शामील करवाए । किसी कारण से अकेली हुइ हो तो यतनापूर्वक पहुँचाए । [११९ - १३६] गाँव में जिन मंदिर में दर्शन करके, बाहर आकर श्रावक को पूछे कि, 'गाँव में साधु है कि नहीं' श्रावक कहे कि, 'यहाँ साधु नहीं है लेकिन पास ही के गाँव में है । और वो बिमार है ।' तो साधु उस गाँव में जाए । सांभीगिक, अन्य सांभोगिक और ग्लान की सेवा करे उसके अनुसार पासत्था, ओसन्न, कुशील, संसक्त, नित्यवासी, ग्लान की भी सेवा करे, लेकिन उनकी सेवा प्रासुक आहार पानी औषध आदि से करे । किसी ऐसे गाँव में चले जाए कि जहाँ ग्लान के उचित चीज मिल शके । अगले गाँव में गया, वहाँ ग्लान साधु के समाचार मिले तो उस गाँव में जाकर आचार्य आदि हो तो उन्हें बताए, आचार्य कहे कि, 'ग्लान को दो' तो ग्लान को दे, लेकिन ऐसा कहे कि- 'प्लान के योग्य दुसरा काफी है, इसलिए तुम ही उपयोग करो', तो खुद उपयोग करे । पता चला कि, 'आचार्य शठ है ।' तो वहाँ ठहरे नहीं । वेशधारी कोइ ग्लान हो तो, वो अच्छा हो इसलिए कहे कि - 'धर्म में उद्यम करो, जिससे संयम में दोष न लगे, उस प्रकार से समजाए । इस प्रकार से ग्लान आदि की सेवा करते हुए आगे विहार करे । इस प्रकार सभी जगह सेवा आदि करते हुए विहार करे तो आचार्य की आज्ञा का लोप नहीं होता । क्योंकि आचार्यने जिस काम के लिए भेजा है उस जगह पर अगले दिन पहुँचे । श्री तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा है कि- 'प्लान की सेवा करनी चाहिए ।' इसलिए बीच में ठहर जाए, उसमें आचार्य की आज्ञा का लोप किया नहीं कहलाता । लेकिन आज्ञा का पालन कहलाता है । क्योंकि तीर्थंकर की आज्ञा आचार्य की आज्ञा से ज्यादा ताकतवर है । यहां दृष्टांत है । एक राजा नीकला । सिपाइ को कहा कि, कुछ गाँव में मुकाम करेंगे । वहाँ एक आवास करवाओ । सिपाई गया और कहा कि राजा के लिए एक आवास तैयार करवाओ। यह बात सुनकर मुखीने भी गाँववालो को कहा कि, मेरे लिए भी एक आवास बनवाओ। गाँव के लोगों ने सोचा कि, 'राजा एक दिन रहकर चले जाएंगे, मुखी हंमेशा यहाँ रहेंगे, इसलिए राजा के लिए सामान्य मकान और मुखी के लिए सुन्दर महल जैसा मकान बनवाए। राजा के लिए घास के मंडप जैसा मकान बनवाया, जब मुखी के लिए खूबसूरत मकान राजा के देखने में आने से पूछा कि, 'यह मकान किसका है ?' लोगोंने कहा कि, मुखिया का, सुनते ही राजा गुस्सा हो गया और मुखिया को नीकाल देने के बाद गाँव लोगों को सजा की। यहाँ मुखिया की जगह आचार्य है, राजा की जगह तीर्थंकर भगवंत । गाँव लोगों की जगह साधु । श्री तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा का लोप करने से आचार्य और साधु को संसार समान सजा होती है । दुसरे गाँव के लोगों ने सोचा कि - 'राजा के लिए सबसे सुन्दर महल जैसा बनाए, क्योंकि राजा के ले जाने के बाद मुखीया 'काम में आएगा' राजा आया, वो मकान देखकर खुशखुश हो गया और गाँव के लोगों का कर माफ किया और मुखीया की पदवी बढ़ाकर, दुसरे गाँव का भी स्वामी बनाया । इस प्रकार जो श्री तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा के अनुसार व्यवहार करता है वो सागर पार कर लेता है । तीर्थंकर की आज्ञा में आचार्य की आज्ञा आ जाती है ।
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy