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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद ३६९६ नक्षत्र और ८८४०७०० कोडाकोडी तारागण प्रकाशीत करते है ।
[१२७] संक्षेप में मानव लोक में यह नक्षत्र समूह कहा है । मानव लोक की बाहर जिनेन्द्र द्वारा असंख्य तारे बताए है ।
[१२८] इस तरह मानव लोक में जो सूर्य आदि ग्रह बताए है वो कदम्ब वृक्ष के फूल की समान विचरण करते है ।।
[१२९] इस तरह मानवलोक में सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र बताए है जिसके नाम और गोत्र सामान्य बुद्धिवाले मानव नहीं कह शकते ।
[१३०-१३५] मानव लोक में चन्द्र और सूर्य की ६६ पिटक है और एक पीटक में दो चन्द्र और सूर्य है । नक्षत्र आदि की ६६ पिटक और एक पिटक में ५६ नक्षत्र है । महाग्रह ११६ है । इसी तरह मानवलोक में चन्द्र-सूर्य की ४-४ पंक्ति है । हर एक पंक्ति में ६६ चन्द्र, ६६ सूर्य है । नक्षत्र की ५६ पंक्ति है और हर एक पंक्ति में ६६-६६ नक्षत्र है । ग्रह की ७६ पंक्ति होती है हरएक में ६६-६६ ग्रह होते है ।
[१३६] चन्द्र, सूर्य और ग्रह समूह अनवरित रूप से उस मेरु पर्वत की परिक्रमा करते हुए सभी मेरु पर्वत की मंडलाकार प्रदक्षिणा करते है ।
[१३७] उसी तरह नक्षत्र और ग्रह के नित्य मंडल भी जानने वो भी मेरु पर्वत की परिक्रमा मंडल के आकार से करते है ।
[१३८] चन्द्र और सूर्य की गति ऊपर नीचे नहीं होती लेकिन अभ्यंतर-बाह्य तिर्की और मंडलाकार होती है ।
[१३९] चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र आदि ज्योतिष्क के परिभ्रमण विशेष द्वारा मानव से सुख और दुःख की गति होती है ।
[१४०] यह ज्योतिष्क देव निकट हो तो तापमान नियम से बढ़ता है और दूर हो तो तापमान कम होता है।
[१४१] उसका ताप क्षेत्र कलम्बुक पुष्प के संस्थान समान होता है और चन्द्र-सूर्य का तापक्षेत्र भीतर से संकुचित और बाहर से विस्तृत होता है ।
१४२] किस कारण से चन्द्रमा बढता है और किस कारण से चन्द्रमा क्षीण होता है ? या किस कारण से चन्द्र की ज्योत्सना और कालिमा होती है ?
[१४३] राहु का काला विमान हमेशा चन्द्रमा के साथ चार अंगुल नीचे गमन करते है ।
[१४४] शुकलपक्ष में चन्द्र का ६२-६२ हिस्सा राहु से अनावृत होकर हररोज बढ़ता है और कृष्ण पक्ष में उतने ही वक्त में राहु से आवृत होकर कम होता है ।
[१४५] चन्द्रमा के पंद्रह हिस्से क्रमिक राहु के पंद्रह हिस्सो से अनावृत्त होते जाते है और फिर आवृत्त होते जाते है ।
[१४६] उस कारण से चन्द्रमा वृद्धि को और ह्रास को पाते है । उसी कारण से ज्योत्सना और कालिमा आते है ।
[१४७] मानव लोक में पेदा होनेवाले और संचरण करनेवाले चन्द्र, सूर्य, ग्रह-समूह आदि पाँच तरह के ज्योतिष्क देव होते है ।