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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
(सुंदरी) ! मैंने जो यह बीस इन्द्र बताए उनका भवन परिग्रह सुन । वो चमरेन्द्र वैरोचन और असुरेन्द्र महानुभव के श्रेष्ठ भवन की गिनती ६४ लाख है । वो भूतानन्द और धरण नाम के दोनों नागकुमार इन्द्र के श्रेष्ठ भवन की गिनती ५४ लाख है । हे सुंदरी ! वेणुदेव और वेणुदालि दोनों सुवर्ण इन्द्र के भवन ७२ लाख है । वेलम्ब और प्रभंजन वायुकुमार इन्द्र के श्रेष्ठ भवन की गिनती ९६ लाख है । इस तरह । असुर के ६४, नागकुमार के ५४, सुवर्णकुमार के ७२, वायुकुमार के ९६ । द्विप-दिशा - उदधि- विद्युत- स्तनित और अग्नि वो छ युगल के प्रत्येक के भवन ७६ - ७६ लाख है ।
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[२७] हे लीला स्थित सुंदरी अब उनकी स्थिति मतलब आयु विशेष को क्रम से सुन ।
[२८-३१] हे सुंदरी ! चमरेन्द्र की उत्कृष्ट आयु स्थिति एक सागरोपम है । वो ही बलि और वैरोचन इन्द्र की भी जानना । चमरेन्द्र सिवा बाकी के दक्षिण दिशा के इन्द्र की उत्कृष्ट आयु-स्थिति देढ़ पल्यो है । बलि के सिवा बाकी जो उत्तर दिशा स्थित इन्द्र है उसकी आयु स्थिति कुछ न्यून दो पल्योपम है । यह सब आयु- स्थिति का विवरण है । अब तूं उत्तम भवनवासी देव के सुन्दर नगर का माहात्म्य भी सुन,... ।
[३२-३८] सम्पूर्ण रत्नप्रभा पृथ्वी ११००० योजन में एक हजार योजन के अलावा भवनपति के नगर बने है । यह सब भवन भीतर से चतुष्कोण और बाहर से गोल है । आम तोर पर अति सुन्दर, रमणीय, निर्मल और व्रज रत्न के बने है भवन नगर के प्राकार सोने के बने हुए है । श्रेष्ठ कमल की पंखडी पर रहा यह भवन अलग-अलग मणी से शोभायमान स्वभाव से मनोहारी दिखते है । लम्बे अरसे तक न मूर्जानेवाली पुष्पमाला और । चन्दन से बने दरवाजयुक्त उस नगर का ऊपर का हिस्सा पताका से शोभायमान है । इसलिए वो श्रेष्ठ नगर सुन्दर है । वो श्रेष्ठ द्वार आँठ योजन ऊँचे है और उसका ऊपर का हिस्सा लाल कलश से सजाए हुए है, ऊपर सोने के घंट बँधे है । इस भवन में भवनपति देव श्रेष्ठ तरुणी के गीत और वाद्य की आवाज की कारण से हमेशा सुख युक्त और प्रमुदित रहकर पसार होनेवाले वक्त को नहीं जानते ।
[३९-४०] चमरेन्द्र, धरणेन्द्र, वेणुदेव, पूर्ण, जलकान्त, अमितगति, वेलम्ब, घोष, हरि और अग्निशीख । उस भवनपति इन्द्र के मणिरत्न से जडित स्वर्ण स्तम्भ और रमणीय लतामंडप युक्त भवन दक्षिण दिशा की ओर होता है उत्तर दिशा और उसके आसपास बाकी के इन्द्र के भवन होते है ।
[४१-४२] दक्षिण दिशा की ओर असुरकुमार के ३४ लाख, नागकुमार के ४४ लाख सुवर्णकुमार के ४८ लाख और द्वीप, उदधि, विद्युत, स्तनित और अग्निकुमार के ४०-४० लाख और वायुकुमार के ५० लाख भवन होते हैं । उत्तर दिशा की ओर असुरकुमार के ३० लाख, नागकुमार के ४० लाख, सुवर्णकुमार के ३४ लाख, वायुकुमार के ४६; द्वीप, उदधि, स्तनित, अग्निकुमार के ३६- ३६ लाख भवन है ।
[४३] सभी भवनपति और वैमानिक इन्द्र की तीन पर्षदा होती है । उन सबके त्रायस्त्रिंशक, लोकपाल और सामानिक देव होते है और चार गुने अंगरक्षक देव होते है । [४४] दक्षिण दिशा के भवनपति के ६४००० और उत्तर दिशा के भवनपति के ६०००० वाणव्यंतर के ६००० और ज्योतिष इन्द्र के ४००० सामानिक देव होते है ।