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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[ ६४ ] फिर भी उस वक्त गाढ़ तरह से धीरता से अपने प्रत्याख्यान में अच्छी तरह उपयोगशील रहे । वाघण से खा जाने से उन्होंने अन्त में समाधिपूर्वक मरण पाया ।
[ ६५ ] उज्जयिनी नगरी में श्री अवन्तिसुकुमाल ने संवेग भाव को पाकर दीक्षा ली । सही अवसर पर पादपोगम अनशन अपनाकर वो श्मशान की मध्य में एकान्त ध्यान में रहे थे।
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[ ६६ ] रोषायमान ऐसी शियालण ने उन्हें त्रास पूर्वक फाड़कर खा लिया । इस तरह तीन प्रहर तक खाने से उन्होंने समाधिपूर्वक मरण पाया ।
[ ६७ ] शरीर का मल, रास्ते की धूल और पसीना आदि से कादवमय शरीरवाले, लेकिन शरीर के सहज अशुचि स्वभाव के ज्ञाता, सुवणग्राम के श्री कार्तिकार्यऋषि शील और संयमगुण आधार समान थे । गीतार्थ ऐसे वो महर्षि का देह अजीर्ण बिमारी से पीड़ित होने के बावजूद भी वो सदाकाल समाधि भाव में रमण करते थे ।
[६८] एक वक्त रोहिड़कनगर में प्रासुक आहार की गवेषणा करते हुए उस ऋषि को पूर्ववैरी किसी क्षत्रिय ने शक्ति के प्रहार से बींध लिया
[६९] देह भेदन के बावजूद भी वो महर्षि एकान्त - विरान और तापरहित विशाल भूमि पर अपने देह का त्याग करके समाधि मरण पाया ।
[७०] पाटलीपुत्र नगर में श्री चन्द्रगुप्त राजा का श्री धर्मसिंह नाम का मित्र था । संवेगभाव पाकर उसने चन्द्रगुप्त की लक्ष्मी का त्याग करके प्रवज्या अपनाई
[ ७१] श्री जिनकथित धर्म में स्थित ऐसे उसने फोल्लपुर नगर में अनशन को अपनाया और गृद्धपृष्ठ पञ्चकखाण को शोकरहितरूप से किया । उस वक्त जंगल में हजार जानवरों ने उनके शरीर को चूंथ डाला ।
[७२] इस तरह जिसका शरीर खाया जा रहा है, ऐसे वो महर्षि, ने शरीर को वोसिराकेत्याग करके पंड़ित मरण पाया ।
[७३] पाटलीपुत्र - पटणा नगर में चाणक्य नाम का मंत्री प्रसिद्ध था । किसी अवसर पर सर्व तरह के पाप आरम्भ से निवृत्त होकर उन्होंने इंगिनी मरण अपनाया ।
[७४] उसके बाद गाय के वाड़े में पादपोगम अनशन को अपनाकर वो कायोत्सर्गध्यान में खड़े रहे ।
[ ७५ ] इस अवसर पर पूर्वबैरी सुबन्धु मंत्री ने अनुकूल पूजा के बहाने से वहां छाणे जलाए, ऐसे शरीर जलने के बावजूद भी, श्री चाणक्य ऋषि ने समाधिपूर्वक मरण को प्राप्त किया ।
[ ७६ ] काकन्दी नगरी में श्री अमृतघोष नाम का राजा था । उचित अवसर पर उसने पुत्र को राज सोंपकर प्रवज्या ग्रहण की ।
[७७] सूत्र और अर्थ में कुशल और श्रुत के रहस्य को पानेवाले ऐसे वो राजर्षि शोकरहितरूप से पृथ्वी पर विहार करते क्रमशः काकन्दी नगर में पधारे ।
[७८] वहाँ चंड़वेग नाम के वैरी ने उनके शरीर को शस्त्र के प्रहार से छेद दिया । शरीर छेदा जा रहा है उस वक्त भी वो महर्षि समाधिभाव में स्थिर रहे और पंड़ित मरण प्राप्त किया।
[७९-८०] कौसाम्बी नगरी में ललीतघटा बत्तीस पुरुष विख्यात थे । उन्होने संसार