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महानिशीथ-२/३/४०८
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हो, किनारे पर अलग हो जाए, उसके पास हो तब तक स्नेह रखनेवाली, दूर जाने के बाद भूल जानेवाली होती है । इस तरह कई लाख दोष से भरपूर ऐसे सर्व अंग और उपांगवाली बाह्य और अभ्यंतर महापाप करनेवाली अविनय समान । विष की वेलड़ी, अविनय की कारण से अनर्थ समूह के उत्पन्न करनेवाली स्त्री होती है ।
जिस स्त्री के शरीर से हमेशा नीकलते बदबूवाले अशुचि सड़े हुए कुत्सनीय, निन्दनीय, नफरत के लायक सर्व अंग उपांगवाली और फिर परमार्थ से सोचा जाए तो उसके भीतर और बाहर के शरीर के अवयव से ज्ञात महासत्त्ववाली कामदेव से ऊँबनेवाले और वैराग्य पाकर आत्मा से ज्ञात, सर्वोत्तम और उत्तम पुरुष को और धर्माधर्म का रूप अच्छी तरह से समजे हो उनको वैसी स्त्री के लिए पलभर भी कैसे अभिलाषा हो ?
[४०९-४१०] जिसकी अभिलाषा पुरुष करता है, उस स्त्री की योनि में पुरुष के एकसंयोग के समय नौ लाख पंचेन्द्रिय समूर्छिम जीव नष्ट होते है । वो जीव अति सूक्ष्म स्वरूप होने से चर्मचक्षु से नहीं देख शकते । इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि स्त्री के साथ एक बार या बार बार बोलचाल न करना । और फिर उसके अंग या उपांग रागपूर्वक निरीक्षण न करना । यावत् ब्रह्मचारी पुरुष को मार्ग में स्त्री के साथ गमन नहीं करना ।
[४११] हे भगवंत ! स्त्री के साथ बातचीत न करना, अंगोपांग न देखना या मैथुन सेवन का त्याग करना ? हे गौतम ! दोनों का त्याग करो ।
हे भगवंत ! क्या स्त्री का समागम करने समान मैथुन का त्याग करना या कई तरह के सचित्त अचित्त चीज विषयक मैथुन का परीणाम मन, वचन, काया से त्रिविध से सर्वथा यावज्जीवन त्याग करे ? हे गौतम ! उसे सर्व तरीके से त्याग करो ।
[४१२] हे भगवंत ! जो कोई साधु-साध्वी मैथुन सेवन करे वो दुसरों के पास वन्दन करवाए क्या ?
हे गौतम ! यदि कोई साधु-साध्वी दीव्य, मानव या तिर्यंच संग से यावत् हस्तकर्म आदि सचित्त चीज विषयक दुष्ट अध्यवसाय करके मन, वचन, काया से खुद मैथुन सेवन करे, दुसरों को प्रेरणा उपदेश देकर मैथुन सेवन करवाए, सेवन करनेवाले को अच्छा माने, कृत्रिम और स्वाभाविक उपकरण से उसी मुताबिक त्रिविध-त्रिविध मैथुन का सेवन करे, करवाए या अनुमोदना करे वो साधु-साध्वी दुरन्त बूरे विपाकवाले पंत-असुंदर, अति बुरा, मुख भी जिसका देखनेलायक नहीं है । संसार के मार्ग का सेवन करनेवाला, मोक्षमार्ग से दूर, महापाप कर्म करनेवाला वो वंदन करने लायक नहीं है । वंदन करवाने लायक नहीं है । वंदन करनेवाले को अच्छा मानने लायक नहीं है, त्रिविधे वंदन के उचित नहीं या जहाँ तक प्रायश्चित् करके विशुद्धि न हो, तब तक दुसरे वंदन करते हो तो खुद वंदन न करना ।
हे भगवंत ! ऐसे लोगों को जो वंदन करे वो क्या पाए ? हे गौतम ! अठारह हजार शीलांग धारण करनेवाले महानुभाव तीर्थंकर भगवंत की महान् आशातना करनेवाला होता है । और आशातना के परीणाम को आश्रित करके यावत् अनन्त संसारीपन पाता है ।
[४१३-४१५] हे गौतम ! ऐसे कुछ जीव होते है कि जो स्त्री का त्याग अच्छी तरह से कर शकते है । मैथुन को भी छोड़ देते है । फिर भी वो परिग्रह की ममता छोड़ नहीं