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नमो नमो निम्मलदसणस्स २९| संस्तारक प्रकिर्णक-६- हिन्दी अनुवाद
[१] श्री जिनेश्वरदेव-सामान्य केवलज्ञानीओ के बारे में वृषभ समान, देवाधिदेव श्रमण भगवान् श्री महावीर परमात्मा को नमस्कार करके अन्तिम काल की आराधना रूप संथारा के स्वीकार से प्राप्त होनेवाली परम्परा को मैं कहता हैं ।
[२] श्री जिनकथित यह आराधना, चारित्र धर्म की आराधना रूप है । सुविहित पुरुष इस तरह की अन्तिम आराधना की इच्छा करते है, क्योंकी उनके जीवन पर्यन्त की सर्व आराधनाओ की पताका के स्वीकार रूप यह आराधना है ।
[३] दरिद्र पुरुष धन, धान्य आदि में जैसे आनन्द मानते है, और फिर मल्ल पुरुष जय पताका पाने में जैसे गौरख लेते है और इसकी कमी से वो अपमान और दुनि को पाते है, वैसे सुविहित पुरुष इस आराधना में आनन्द और गौरव को प्राप्त करते है ।।
[४] मणिकी सर्व जाति के लिए जैसे वैडूर्य, सर्व तरह के खुश्बुदार द्रव्य के लिए जैसे चन्दन और रत्न में जैसे वज्र होता है तथा
[५] सर्व उत्तम पुरुषो में जैसे अरिहंत परमात्मा और जगत के सर्व स्त्री समुदाय में जैसे तीर्थंकरो की माता होती है वैसे आराधना के लिए इस संथारा की आराधना, सुविहित आत्मा के लिए श्रेष्ठतर है ।
[६] और वंश में जैसे श्री जिनेश्वर देव का वंश, सर्व कुल में जैसे श्रावककुल, गति के लिए जैसे सिद्धिगति, सर्व तरह के सुख में जैसे मुक्ति का सुख, तथा
[७] सर्व धर्म में जैसे श्री जिनकथित अहिंसाधर्म, लोकवचन में जैसे साधु पुरुष के वचन, इत्तर सर्व तरह की शुद्धि के लिए जैसे सम्यक्त्वरूप आत्मगुण की शुद्धि, वैसे श्री जिनकथित अन्तिमकाल की आराधना में यह आराधना जरूरी है ।
[८] समाधिमरण रूप यह आराधना सच ही में कल्याणकर है । अभ्युदय उन्नति का परमहेतु है । इसलिए ऐसी आराधना तीन भुवन में देवताओं को भी दुर्लभ है । देवलोक के इन्द्र भी समाधिपूर्वक के पंडित मरण की एक मन से अभिलाषा रखते है ।
[] विनेय ! श्री जिनकथित पंड़ित मरण तुने पाया । इसलिए निःशंक कर्म मल्ल को हणकर उस सिद्धि की प्राप्ति रूप जय पताका पाई।
[१०] सर्व तरह के ध्यान में जैसे परमशुक्लध्यान, मत्यादि ज्ञान में केवलज्ञान और सर्व तरह के चारित्र में जैसे कषाय आदि के उपशम से प्राप्त यथाख्यात चारित्र क्रमशः मोक्ष का कारण बनता है ।
[११] श्री जिनकथित श्रमणत्व, सर्व तरह के श्रेष्ठ लाभ में सर्वश्रेष्ठ लाभ गिना जाता है; कि जिसके योग से श्री तीर्थंकरत्व, केवलज्ञान और मोक्ष, सुख प्राप्त होता है ।
___ [१२] और फिर परलोक के हित में रक्त और क्लिष्ट मिथ्यात्वी आत्मा को भी मोक्ष