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बृहत्कल्प - ५/१५६
ऐसी प्रशंसा करे तो उसे हस्तकर्म का दोष लगता है और वो अनुद्घातिक मासिक प्रायश्चित् की हिस्सेदार होती है ।
[१५७ - १६१] साध्वी का अकेले- १. रहना, २. आहार के लिए गृहस्थ के घर आना-जाना, ३ . मल-मूत्र त्याज्य या स्वाध्याय भूमि आना-जाना, ४. एक गाँव से दूसरे गाँव विचरण करना, ५ . वर्षावास रहना ना कल्पे ।
[१६२-१६४] साध्वी का नग्न होना, पात्र रहित (कर - पात्री) होना, वस्त्ररहित होकर कार्योत्सर्ग करना न कल्पे ।
[१६५-१६६] साध्वी की गाँव यावत् संनिवेश के बाहर हाथ ऊपर करके, सूर्य के सामने मुँह करके एक पाँव पर खड़े रहकर आतापना लेना न कल्पे, लेकिन उपाश्रय में कपड़े पहनी हुई दशा में दोनों हाथ लम्बे करके पाँव समतोल रखकर खड़े होकर आतापना लेना कल्पे ।
[१६७ - १७८] साध्वी को इतनी बातें न कल्पे - १. ज्यादा देर कार्योत्सर्ग में खड़ा रहना, २. भिक्षुप्रतिमा धारण करना, ३. उत्कुटुक आसन पर बैठना, ४. दोनों पाँव पीछे के हिस्से को छू ले, गौ की तरह, दोनों पीछे के हिस्से के सहारे बैठकर एक पाँव हाथी की सूँड़ की तरह ऊपर करके, पद्मासन में, अर्ध पद्मासन में पाँच तरीके से बैठना, ५. वीरासन में बैठना ६. दंडासन में बैठना, ६. लंगड़ासन में बैठना, ७. अधोमुखी होकर रहना, ८. उत्तरासन में रहना, ९. आम्रकुब्जिकासन में रहना, ९. एक बगल में सोने का अभिग्रह करना, १०. गुप्तांग ढ़कने के लिए चार अंगूल चौड़ी पट्टी जिसे 'आकुंचन पट्टक" कहते है वो रखना या पहनना ( यह दश बाते साध्वी को न कल्पे ।)
[१७९] साधु को आकुंचन पट्टक रखना या पहनना कल्पे ।
[१८०-१८१] साध्वी को "सावश्रय" आसन में खड़े रहना या बैठना न कल्पे लेकिन साधु को कल्पे (सावश्रय यानि जिसके पीछे सहारा लेने के लिए लकड़ा आदि का तकिया लगा हो वैसी कुर्सी आदि)
[१८२ - १८३] साध्वी को सविषाणपीठ (बैठने की खटिया, चोकी आदि) या फलक पर खड़े रहना, बैठना न कल्पे... साधु को कल्पे ।
[१८४ - १८५] साध्वी को गोल नालचेवाला तुंबड़ा रखना या इस्तेमाल करना न कल्पे, साधु को कल्पे ।
[१८६ - १८७] साध्वी को गोल (दंड़ी की) पात्र केसरिका (पात्रा पूजने की पुंजणी) रखनी या इस्तेमाल करना न कल्पे, साधु को कल्पे ।
[१८८-१८९] साध्वी को लकड़े की (गोल) दंडीवाला पादपौंछन रखना या इस्तेमाल करना न कल्पे, साधु को कल्पे ।
[१९०] साधु-साध्वी उग्र बिमारी या आतंक बिना एक दुसरे का मूत्र पीना या मूत्र से एक दुसरे की शुद्धि करना न कल्पे ।
ऐसे
[१९१-१९३] साधु-साध्वी को परिवासित (यानि रातमें रखा हुआ या कालातिक्रान्त - १ तल जितना या चपटी जितना भी आहार करना और बूँद जितना भी पानी पीना, २. उग्र बिमारी या आतंक बिना अपने शरीर पर थोडा या ज्यादा लेप लगना, ३. बिमारी या