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________________ १०० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद अपने दोष की माँफी माँगे बिना चले जाए, दुसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे या वैसा करनेवाले को साधु-साध्वी की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१०९७] जो साधु-साध्वी (शास्त्रोक्त) प्रमाण या गणन संख्या से ज्यादा उपधि रखे, रखवाए या रखनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।। [१०९८-११०८] जो साधु-साध्वी सचित्त पृथ्वी पर...आदि..पर मल-मूत्र का त्याग करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । (संक्षेप में कहा जाए तो विराधना हो वैसी जगह में मल-मूत्र परठवे, ऐसा इस ११ सूत्र में बताते है | १३वे उद्देशक के सूत्र ७८९ से ७९९ इन ११ सूत्र में यह वर्णन किया है उस प्रकार समझ लेना फर्क केवल इतना कि उन हर एक जगह पर मल-मूत्र का त्याग करे ऐसे सम्बन्ध प्रत्येक दोष के साथ जुडना । इस प्रकार उद्देशक-१६-में बताए अनुसार के किसी भी दोष का खुद सेवन करे, दुसरों के पास सेवन करवाए या अनुमोदन करे तो चातुर्मासिक परिहार स्थान उद्घातिक यानि “लघु चौमासी" प्रायश्चित् आता है । (उद्देशक-१७) "निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में ११०९ से १२५९ यानि कि कुल १५१ सूत्र है। जिसमें बताए अनुसार किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्घातियं' नाम का प्रायश्चित् आता है । [११०९-१११०] जो साधु-साध्वी कुतुहूलवृत्ति से किसी त्रस्त जानवर को तृण, घास, काठ, चर्म, वेल, रस्सी या सूत से बाँधे या बँधे को छोड़ दे, छुड़वा दे, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [११११-११२२] जो साधु-साध्वी कुतुहूलवृत्ति से हार, कड़े, आभूषण, वस्त्र आदि करवाए, अपने पास रखे या धारण करे यानि पहने । यह सब काम खुद करे-दुसरों से करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । (उद्देशक-७ के सूत्र ४७० से ४८१ उन १२ सूत्र में यह सब विस्तार से वर्णन किया है । वे सब बात यहाँ समज लेना, फर्क केवल इतना कि वहाँ यह सब काम मैथुन की इच्छा से बताए है उसके बजाय यहाँ कुतूहल वृत्ति से किए हुए जानना-समजना । [११२३-११७५] जो कोई साध्वी अन्य तीर्थक या गृहस्थ के पास साधु के पाँव प्रक्षालन आदि शरीर परिकर्म करवाए, दुसरों को वैसा करने की प्रेरणा दे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे वहाँ से आरम्भ करके एक गाँव से दुसरे गाँव विचरण करते हुए किसी साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को कहकर साधु के मस्तक को आच्छादन करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । (उपरोक्त ११२३ से ११७५ यानि कि कुल ५३ सूत्र और अब आगे कहलाएंगे वो ११७६ से १२२९ सूत्र हर एक में आनेवाले दोष की विशद् समज या अर्थ इससे पहले उद्देशक-३-के सूत्र १३३ से १८५ में बताए गए है । वो वहाँ से समज लेना । फर्क केवल इतना कि ११२३ से ११७५ सूत्र में किसी साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को कहकर साधु
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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