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________________ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-४/२०९ ९७ समान है । वहाँ परम ऋद्धिशाली पल्योपम आयुष्य युक्त पद्म देव निवास करता है । उसकी राजधानी उत्तर में है । वह क्षेत्र रम्यकवर्ष क्यों कहलाता है ? गौतम ! रम्यकवर्ष सुन्दर, रमणीय है एवं उसमें रम्यक नामक देव निवास करता है, अतः वह रम्यकवर्ष कहा जाता है। भगवन् ! जम्बूद्वीप में रुक्मी वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! रम्यक वर्ष के उत्तर में, हैरण्यवत वर्ष के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम लवणसमुद्र के पूर्व में है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । वह महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के सदृश है । इतना अन्तर है-उसकी जीवा दक्षिण में है । उसका धनुपृष्ठभाग उत्तर में है । वहाँ महापुण्डरीक द्रह है । उसके दक्षिण तोरण से नरकान्ता नदी निकलती है । पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है । रूप्यकूला नामक नदी महापुण्डरीक द्रह के उत्तरी तोरण से निकलती है। वह पश्चिमी लवणसमुद्र में मिल जाती है । रुक्मी वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम! आठ, कूट है । यथा [२१०] सिद्धायतनकूट, रुक्मीकूट, रम्यककूट, नरकान्ताकूट, बुद्धिकूट, रूप्यकूलाकूट, हैरण्यवतकूट तथा मणिकांचनकूट । [२११] ये सभी कूट पांच-पांच सौ योजन ऊँचे हैं । उत्तर में इनकी राजधानियां है। भगवन् ! वह रुक्मी वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत रजतनिष्पन्न रजत की ज्यों आभामय एवं सर्वथा रजतमय है । वहाँ पल्योपमस्थितिक रुक्मी नामक देव निवास करता है, इसलिए वह रुक्मी वर्षधर पर्वत कहा जाता है । भगवन् ! जम्बूद्वीप का हैरण्यवत क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत के उत्तर में, शिखरी वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है । उसकी जीवा दक्षिण में है, धनुपृष्ठभाग उत्तर में है । बाकी वर्णन हैमवत-सदृश है । हैरण्यवत क्षेत्र में माल्यवत्पर्याय वृत्तवैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! सुवर्णकूला महानदी के पश्चिम में, रूप्यकूला महानदी के पूर्व में हैरण्यवत क्षेत्र के बीचोंबीच है । शब्दापाती वृत्त वैताढ्य के समान माल्यवत्पर्याय है । वहां परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त प्रभास देव निवास करता है । इन कारणों से वह माल्यवत्पर्याय वृत्त वैताढ्य कहा जाता है । राजधानी उत्तर में है । हैरण्यवत क्षेत्र नाम किस कारण कहा जाता है ? गौतम ! हैरण्यवत क्षेत्र रुक्मी तथा शिखरी वर्षधर पर्वतों से दो ओर से घिरा हुआ है । वह नित्य हिरण्य-देता है, नित्य स्वर्ण प्रकाशित करता है, जो स्वर्णमय शिलापट्टक आदि के रूप में वहाँ यौगलिक मनुष्यों के शय्या, आसन आदि उपकरणों के रूप में उपयोग में आता है, वहाँ हैरण्यवत देव निवास करता है, इसलिए वह हैरण्यवत क्षेत्र कहा जाता है । भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् शिखरी वर्षधर कहाँ है ? गौतम ! हैरण्यवत के उत्तर में, ऐरावत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में शिखरी वर्षधर पर्वत है । उसकी जीवा दक्षिण में है । उसका धनुपृष्ठभाग उत्तर में है बाकी वर्णन चुल्ल हिमवान् के अनुरूप है । उस पर पुण्डरीकद्रह है । उसके दक्षिण तोरण से सुवर्णकूला महानदी निकलती है । वह रोहितांशा की ज्यों पूर्वी लवणसमुद्र में मिलती है । रक्ता महानदी पूर्व में तथा रक्तवती पश्चिम में बहती है । शिखरी वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ?
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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