SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद और १२,००० जम्बू हैं । [१५३] पश्चिम में सात अनीकाधियों के सात जम्बू हैं । चारों दिशाओं में १६,००० आत्मरक्षक देवों के १६००० जम्बू हैं । [१५४] जम्बू ३०० वनखण्डों द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है । उसके पूर्व में पचास योजन पर अवस्थित प्रथम वनखण्ड में जाने पर एक भवन आता है, जो एक कोश लम्बा है । बाकी की दिशाओं में भी भवन हैं । जम्बू सुदर्शन के ईशान कोण में प्रथम वनखण्ड में पचास योजन की दूरी पर पद्म, पद्मप्रभा, कुमुदा एवं कुमुदप्रभा नामक चार पुष्करिणियाँ हैं। वे एक कोश लम्बी, आधा कोश चौड़ी तथा पाँच सौ धनुष भूमि में गहरी हैं । उनके बीचबीच में उत्तम प्रासाद हैं । वे एक कोश लम्बे, आधा कोश चौड़े तथा कुछ कम एक कोश ऊँचे हैं । इसी प्रकार बाकी की विदिशाओं में भी पुष्करिणियाँ हैं । उनके नाम [१५५] पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा, कुमुदप्रभा, उत्पलगुल्मा, नलिना, उत्पला, उत्पलोज्ज्वला । [१५६] भुंगा, भृगप्रभा, अंजना, कज्जलप्रभा, श्रीकान्ता, श्रीमहिता, श्रीचन्द्रा तथा श्रीनिलया । [१५७] जम्बू के पूर्व दिग्वर्ती भवन के उत्तर में, ईशानकोणस्थित उत्तम प्रासाद के दक्षिण में एक कूट है । वह आठ योजन ऊँचा एवं दो योजन जमीन में गहरा है । वह मूल में ८ योजन, बीच में ६ योजन तता ऊपर ४ योजन लम्बा-चौड़ा है। [१५८] उस शिखर की परिधि मूल में कुछ अधिक २५ योजन, मध्य में कुछ अधिक १८ योजन तथा ऊपर कुछ अधिक बारह योजन है । [१५९] वह मूल में चौड़ा, बीच में संकड़ा और ऊपर पतला है, सर्व स्वर्णमय है, उज्ज्वल है । इसी प्रकार अन्य शिखर हैं । जम्बू सुदर्शना के बारह नाम हैं [१६०] सुदर्शना, अमोघा, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, विदेहजम्बू, सौमनस्या, नियता, नित्यमण्डिता । तथा [१६१] सुभद्रा, विशाला, सुजाता एवं सुमना । [१६२] जम्बू सुदर्शना पर आठ-आठ मांगलिक द्रव्य प्रस्थापित हैं । - भगवन् ! इसका नाम जम्बू सुदर्शना किस कारण पड़ा ? गौतम ! वहाँ जम्बूद्वीपाधिपति, परम ऋद्धिशाली अनादृत नामक देव अपने ४००० सामानिक देवों, यावत् १६००० आत्मरक्षक देवों का, जम्बूद्वीप का, जम्बू सुदर्शना का, अनादृता नामक राजधानी का, अन्य अनेक देवदेवियों का आधिपत्य करता हुआ निवास करता है । अथवा गौतम ! जम्बू सुदर्शना नाम ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय तथा अवस्थित है । अनादृत देव की अनादृता राजधानी कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् मन्दर पर्वत के उत्तर में है । उसके प्रमाण आदि यमिका राजधानी सदृश हैं । [१६३] भगवन् ! उत्तरकुरु-नाम किस कारण पड़ा ? गौतम ! उत्तरकुरु में परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त उत्तरकुरु नामक देव निवास करता है । अथवा उत्तरकुरु नाम शाश्वत है । महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत माल्यवान् नामक वक्षस्कारपर्वत कहाँ है ? गौतम ! मन्देरपर्वत के ईशानकोण में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, उत्तरकुरु के पूर्व
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy