SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-३/१२१ अभिलाषी, किल्बिषिक, कापालिक, करबाधित, शांखिक, चाक्रिक, लांगलिक, मुखमांगलिक, भाट, चारण, वर्धमानक, लंख, मंख, उदार, इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम, शिव, धन्य, मंगल, सश्रीक, हृदयगमनीय, हृदय-प्रह्लादनीय, वाणी से एवं मांगलिक शब्दों से राजा का अनवरत-अभिनन्दन करते हुए, अभिस्तवन करते हुए जन-जन को आनन्द देने वाले राजन् ! आपकी जय हो, आपकी विजय हो । जन-जन के लिए कल्याणस्वरूप राजन् ! आप सदा जयशील हों । आपका कल्याण हो । जिन्हें नहीं जीता है, उन पर आप विजय प्राप्त करें। जिनको जीत लिया है, उनका पालन करें, उनके बीच निवास करें । देवों में इन्द्र की तरह, तारों में चन्द्र की तरह. असुरों में चमरेन्द्र की तरह तथा नागों में धरणेन्द्र की तरह लाखों पूर्व, करोड़ों पूर्व, कोडाकोडी पूर्व पर्यन्त सम्पूर्ण भरतक्षेत्र के ग्राम, आकर-यावत् सन्निवेश-इन सबका सम्यक् पालन कर यश अर्जित करते हुए, इन सबका आधिपत्य, पौरोवृत्य, स्वामित्व, भर्तृत्व, महत्तरत्व, आज्ञेश्वरत्व, सेनापतित्व-इन सबका सर्वाधिकृत रूप में सर्वथा निर्वाह करते हुए निधि, निरन्तर अविच्छिन्न रूप में नृत्य, गीत, वाद्य, वीणा, करताल, तूर्य-एवं घनमृदंगआदि के निपुणतापूर्ण प्रयोग द्वारा निकलती सुन्दर ध्वनियों से आनन्दित होते हुए, विपुलप्रचुर-अत्यधिक भोग भोगते हुए सुखी रहें, यों कहकर उन्होंने जयघोष किया । राजा भरत का सहस्रों नर-नारी अपने नेत्रों से बार-बार दर्शन कर रहे थे । वचनों द्वारा गुणसंकीर्तन कर रहे थे । हृदय से अभिनन्दन कर रहे थे । अपने शुभ मनोरथ-इत्यादि उत्सुकतापूर्ण मनःकामनाएँ लिये हुए थे । सहस्रों नर-नारी-ये स्वामी हमें सदा प्राप्त रहें, बारबार ऐसी अभिलाषा करते थे । नर-नारियों द्वारा अपने हजारों हाथों से उपस्थापित अंजलिमालाको अपना दाहिना हाथ ऊँचा उठाकर बार-बार स्वीकार करता हुआ, घरों की हजारों पंक्तियों लांघता हुआ, वाद्यों की मधुर, मनोहर, सुन्दर ध्वनि में तन्मय होता हुआ, उसका आनन्द लेता हुआ, जहाँ अपना सर्वोत्तम प्रासाद का द्वार था, वहाँ आया । अभिषेक्य हस्तिरत्न को ठहराया, नीचे उतरकर १६००० देवों का, ३२००० राजाओं का, सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न तथा पुरोहितरत्न का, तीन सौ साठ पाचकों का, अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि-जनों का, माण्डलिक राजाओं, ऐश्वर्यशाली, प्रभावशाली पुरुषों तथा सार्थवाहों आदि का सत्कार-सम्मान किया । उन्हें सत्कृत-सम्मानित कर सुभद्रा नामक स्त्रीरत्न, ३२००० ऋतु-कल्याणिकाओं तथा ३२००० जनपद-कल्याणिकाओं. बत्तीस-बत्तीस अभिनेतव्य विधिक्रमों से परिबद्ध बत्तीस हजार नाटकों से-संपरिवृत राजा भरत कुबेर की ज्यों कैलास पर्वत के शिखर के तुल्य अपने उत्तम प्रासाद में गया । राजा ने अपने मित्रों, निजक, स्वजन तथा सम्बन्धियों से कुशलसमाचार पूछे । स्नान आदि संपन्न कर स्नानघर से बाहर निकला, भोजनमण्डप में आकर सुखासन पर बैठा, तेले का पारणा किया । अपने महल में गया । वहाँ मृदंग बज रहे थे । बत्तीस-बत्तीस अभिनेतव्य विधिक्रम से नाटक चल रहे थे, नृत्य हो रहे थे । यों नाटककार, नृत्यकार, संगीतकार राजा का मनोरंजन कर रहे थे । राजा का कीर्ति-स्तवन कर रहे थे । राजा उनका आनन्द लेता हुआ सांसारिक सुख का भोग करने लगा । [१२२] राजा भरत अपने राज्य का दायित्व सम्हाले था । एक दिन उसके मन में ऐसा भाव, उत्पन्न हुआ-मैंने अपने बल, वीर्य, पौरुष एवं पराक्रम द्वारा समस्त भरतक्षेत्र को जीत लिया है । इसलिए अब उचित है, मैं विराट् राज्याभिषेक-समारोह आयोजित करवाऊं
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy