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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद ३८ ने उत्तरदिशावर्ती अंजनक पर्वत पर, उसके लोकपालों ने चारों दधिमुख पर्वतों पर, चमरेन्द्र ने दक्षिण दिशावर्ती अंजनक पर्वत पर, उसके लोकपालों ने दधिमुख पर्वतों पर, बलि ने पश्चिम दिशावर्ती अंजनक पर्वत पर और उसके लोकपालों ने दधिमुख पर्वतों पर परिनिर्वाण-महोत्सव मनाया । इस प्रकार बहुत से भवनपति, वानव्यन्तर आदि ने अष्टदिवसीय महोत्सव मनाये । ऐसा कर वे जहाँ-तहां अपने विमान, भवन, सुधर्मासभाएँ तथा अपने माणवक नामक चैत्यस्तंभ थे, वहां आये । आकर जिनेश्वर देव की डाढ आदि अस्थियों को वज्रमय समुद्गक में रखा। अभिनव, उत्तम मालाओं तथा सुगन्धित द्रव्यों से अर्चना की । अपने विपुल सुखोपभोगमय जीवन में घुलमिल गये । [४७] गौतम ! तीसरे आरक का दो सागरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी काल का दुःषम-सुषमा नामक चौथा आरक प्रारम्भ होता है । उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जाता है । भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र का आकारस्वरूप कैसा होता है ? गौतम ! उस समय भरतक्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है यावत् मणियों से उपशोभित होता है । उस समय मनुष्यों का आकार स्वरूप कैसा होता है ? गौतम ! उन मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन होते हैं, छह प्रकार के संस्थान होते हैं । उनकी ऊँचाई अनेक धनुष-प्रमाण होती है । जघन्य अन्तमुहर्त का तथा उत्कृष्ट पूर्वकोटि का आयुष्य भोगकर उनमें से कई नरक-गति में, यावत् कई देव-गति में जाते हैं, कई सिद्ध, बुद्ध होकर समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । उस काल में तीन वंश उत्पन्न होते हैं-अर्हत् वश, चक्रवर्ति-वंश तथा दशारवंश-बलदेव-वासुदेव-वंश । उस काल में तेवीस तीर्थंकर ग्यारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव तथा नौ वासुदेव उत्पन्न होते हैं । [४८] गौतम ! चतुर्थ आरक के ४२००० वर्ष कम एक सागरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी-काल का दुःषमा नामक पंचम आरक प्रारंभ होता है । उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जाता है । भगवन् ! उस काल में भरतक्षेत्र का कैसा आकार-स्वरूप होता है ? गौतम ! भरतक्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है यावत् मणियों द्वारा उपशोभित होता है । उस काल में भरतक्षेत्र के मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा होता है ? गौतम ! उस समय भरतक्षेत्र के मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन एवं संस्थान होते हैं । उनकी ऊँचाई सात हाथ की होती है । वे जघन्य अन्तमुहूर्त तथा उत्कृष्ट कुछ अधिक सौ वर्ष के आयुष्य का भोग करते हैं । कई नरक-गति में, यावत् तिर्यञ्च देव-गति कई परिनिर्वृत्त होते हैं । उस काल के अन्तिम तीसरे भाग में गणधर्म, पाखण्ड-धर्म, राजधर्म, जाततेज तथा चारित्र-धर्म विच्छिन्न हो जाता है । ४९] गौतम ! पंचम आरक के २१००० वर्ष व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी काल का दुःषम-दुःषमा नामक छठा आरक प्रारंभ होगा । उसमें अनन्त वर्णपर्याय, गन्धपर्याय, रसपर्याय तथा स्पर्शपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जायेगा । भगवन् ! जब वह आरक उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँचा होगा, तो भरतक्षेत्र का आकारस्वरूप कैसा होगा ? गौतम ! उस समय दुःखार्ततावश लोगों में हाहाकार मच जायेगा, अत्यन्त दुःखोद्विग्रता से चीत्कार फैल जायेगा और विपुल जन-क्षय के कारण जन-शून्य हो जायेगा । तब अत्यन्त कठोर, धूल से मलिन, दुस्सह, व्याकुल, भयंकर वायु चलेंगे, संवर्तक वायु चलेंगे । दिशाएँ अभीक्ष्ण धुंआ
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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