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________________ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-२/४४ ३३ बल, वीर्य, आलय, विहार, भावना, क्षान्ति, क्षमाशीलता, गुप्ति, मुक्ति, तुष्टि, आर्जव, मार्दव, लाघव, स्फूर्तिशीलता, सच्चारित्र्य के निर्वाण-मार्ग रूप उत्तम फल से आत्मा को भावित करते हुए उनके अनन्त, अविनाशी, अनुत्तर, निर्व्याघात, सर्वथा अप्रतिहत, निरावरण, कृत्स्न, सकलार्थग्राहक, प्रतिपूर्ण, श्रेष्ठ केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न हुए । वे जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हए । वे गति, आगति, कार्य-स्थिति, भव-स्थिति, मुक्त, कृत, प्रतिसेवित, आविष्कर्म, रहःकर्म, योग आदि के, जीवों तथा अजीवों के समस्त भावों के, मोक्ष-मार्ग के प्रति विशुद्ध भाव-इन सब के ज्ञाता, द्रष्टा हो गये । भगवान् ऋषभ निर्ग्रन्थों, निर्ग्रन्थियों को पाँच महाव्रतों, उनकी भावनाओं तथा जीव-निकायों का उपदेश देते हुए विचरण करते थे । कौशलिक अर्हत् ऋषभ के चौरासी गण, चौरासी गणधर, ऋषभसेन आदि ८४००० श्रमण, ब्राह्मी, सुन्दरी आदि तीन लाख आर्यिकाएँ, श्रेयांस आदि तीन लाख पांच हजार श्रमणोपासक, सुभद्रा आदि पाँच लाख चौवन हजार श्रमणोपासिकाएँ, जिन नहीं पर जिनसदृश सर्वाक्षर-संयोग-वेत्ता जिनवत् अवितथ-निरूपक ४७५० चतुर्दश-पूर्वधर, ९००० अवधिज्ञानी, २०००० जिन, २०६०० वैक्रियलब्धिधर, १२६५० विपुलमति-मनःपर्यवज्ञानी, १२६५० वादी तथा गति-कल्याणक, स्थितिकल्याणक, आगमिष्यद्भद्र, अनुत्तरौपपातिक २२९०० मुनि थे । कौशलिक अर्हत् ऋषभ के २०००० श्रमणों तथा ४०००० श्रमणियों ने सिद्धत्व प्राप्त किया-भगवान् ऋषभ के अनेक अंतेवासी अनगार थे । उनमें कई एक मास यावत् कई अनेक वर्ष के दीक्षा-पर्याय के थे । उनमें अनेक अनगार अपने दोनों घुटनों को ऊँचा उठाये, मस्तक को नीचा किये-ध्यान रूप कोष्ठ में प्रविष्ट थे । इस प्रकार वे अनगार संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए अपनी जीवन-यात्रा में गतिशील थे । भगवान् ऋषभ की दो प्रकार की भूमि थी-युगान्तकर-भूमि तथा पर्यायान्तकर-भूमि । युगान्तकरभूमि यावत् असंख्यात-पुरुष-परम्परा-परिमित थी तथा पर्यायान्तकर भूमि अन्तमुहूर्त थी । [४५] भगवान् ऋषभ के जीवन में पाँच उत्तराषाढा नक्षत्र तथा एक अभिजित् नक्षत्र से सम्बद्धा घटनाएं हैं । चन्द्रसंयोगप्राप्त उत्तराषाढा नक्षत्र में उनका च्यवन-हुआ । उसी में जन्म हुआ । राज्याभिषेक हुआ । मुंडित होकर, घर छोड़कर अनगार बने । उसी में उन्हें केवलज्ञान, केवलदर्शन समुत्पन्न हुआ । भगवान् अभिजित् नक्षत्र में परिनिर्वृत्त हुए । [४६] कौशलिक भगवान् ऋषभ वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन युक्त, सम-चौरस-संस्थानसंस्थित तथा पांच सौ धनुष दैहिक ऊँचाई युक्त थे । वे बीस लाख पूर्व तक कुमारावस्था में तथा तिरेसठ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहे । यों तिरासी लाख पूर्व गृहवास में रहे । तत्पश्चात् मुंडित होकर अगार-वास से अनगार-धर्म में प्रव्रजित हुए । १००० वर्ष छद्मस्थपर्याय में रहे । एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व वे केवलि-पर्याय में रहे । इस प्रकार एक लाख पूर्व तक श्रामण्य-पर्याय का पालन कर-चौरासी लाख पूर्व का परिपूर्ण आयुष्य भोगकर हेमन्त के तीसरे मास में, पांचवें पक्ष में माघ मास कृष्ण पक्ष में तेरस के दिन १०००० साधुओं से संपरिवृत्त अष्टापद पर्वत के शिखर पर छह दिनों के निर्जल उपवास में पूर्वाह्न-काल में पर्यंकासन में अवस्थित, चन्द्र योग युक्त अभिजित् नक्षत्र में, जब सुषम-दुःषमा आरक में नवासी पक्ष बाकी थे, वे जन्म, जरा एवं मृत्यु के बन्धन छिनकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अंतकृत्, परिनिर्वृत्त सर्व-दुःख रहित हुए । 93
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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