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________________ तन्दुलवैचारिक- ९२ २१५ [१२] अब रात दिन क्षीण होने से आयु का क्षय देखो । ( सुनो) [९३] रात-दिन में तीस और महिने में ९०० मुहूर्त प्रमादि के नष्ट होते है । लेकिन अज्ञानी उसे नहीं जानते । [१४] हेमंत ऋतु में सूरज पूरे ३६०० मुहूर्त आयु को नष्ट करते है । उसी तरह ग्रीष्म और वर्षा में भी होता है ऐसा जानना चाहिए [१५] इस लोक में सामान्य से सौ साल के आयु में ५० साल निद्रा में नष्ट होते है । उसी तरह २० साल बचपन और बुढ़ापे में नष्ट होते है । [९६] बाकी के १५ साल शर्दी, गर्मी, मार्गगमन, भूख, प्यास, भय, शोक और विविध प्रकार की बिमारी होती है । [९७] ऐसे ८५ साल नष्ट होते है । जो सौ साल जीनेवाले होते है वो १५ साल जीते है और १०० साल जीनेवाले भी सभी नहीं होते । [९८] इस तरह व्यतीत होनेवाले निःस्सार मानवजीवन में सामने आए हुए चारित्र धर्म का पालन नहीं करते उसे पीछे से पछतावा करना पड़ेगा । [१९] इस कर्मभूमि में उत्पन्न होकर भी किसी मानव मोह से वश होकर जिनेन्द्र के द्वारा प्रतिपादित धर्मतीर्थ समान श्रेष्ठ मार्ग और आत्मस्वरुप को नहीं जानता । [१००] यह जीवन नदी के वेग जैसा चपल, यौवन फूल जैसा मूझनिवाला और सुख भी अशाश्वत है । यह तीनों शीघ्र भोग्य है । [१०१] जिस तरह मृग के समूह को जाल समेट लेती है उसी तरह मानव को जरामरण समान जाल समेट लेती है । तो भी मोहजाल से मूढ़ बने हुए तुम यह सब नहीं देख शकते । [१०२] हे आयुष्मान् ! यह शरीर इष्ट, प्रिय, कांत, मनोज्ञ, मनोहर, मनाभिराम, दृढ, विश्वासनीय, संमत, अभीष्ट, प्रशंसनीय, आभूषण और रत्न करंडक समान अच्छी तरह से गोपनीय, कपड़े की पेटी और तेलपात्र की तरह अच्छी तरह से रक्षित, शर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, चोर, दंश, मशक, वात, पित्त, कफ, सन्निपात, आदि बिमारी के संस्पर्श से बचाने के योग्य माना जाता है । लेकिन वाकई में यह शरीर ? अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत, वृद्धि और हानी पानेवाला, विनाशशील है । इसलिए पहले या बाद में उसका अवश्य परित्याग करना पड़ेगा । हे आयुष्मान् ! इस शरीर में पृष्ठ हिस्से की हड्डी में क्रमशः १८ संधि होती है । उसमें करड़क आकार की बारह पसली की हड्डियां होती है । छ हड्डी केवल बगल के हिस्से को घैरती है उसे कड़ाह कहते है । मानव की कुक्षि एक वितस्थि ( १२ - अंगुल प्रमाण) परिमाण युक्त और गरदन चार अंगुल परिमाण की है । जीभ चार पल और आँख दो पल है। हड्डी के चार खंड़ से युक्त सिर का हिस्सा है । उसमें ३२ दाँत, सात अंगुल प्रमाण जीभ, साढ़े तीन पल का हृदय, २५ पल का कलेजा होता है । दो आन्त होते है । जो पाँच 1 वाम परिमाण को कहते है । दो आन्त इस तरह से है-स्थूल और पतली । उसमें जो स्थूल आन्त है उसमें से मल नीकलता है और जो सूक्ष्म आन्त है उसमें से मूत्र नीकलता है । दो
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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