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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद २०४ अवनत हुआ वो कहता है । [१५६] यदि किसी दिन ( इस अवसर में ) अशुभ कर्म के उदय से शरीर में वेदना या तृपा आदि परिषह उसे उत्पन्न हो । हृदय [१५७] तो निर्यामक, क्षपक ( अनशन करनेवाले) को स्निग्ध, मधुर, हर्षदायी, को भानेवाला, और सच्चा वचन कहते हुए शीख देते है । [१५८] हे सत् पुरुष ! तुमने चतुर्विध संघ के बीच बड़ी प्रतिज्ञा की थी । कि मैं अच्छी तरह से आराधना करूँगा अब उसका स्मरण कर । [१५९] अरिहंत, सिद्ध, केवली और सर्व संघ की साक्षी में प्रत्यक्ष किए गए पच्चक्खाण का भंग कौन करेगा ? [१६०] शियाली से अति खवाये गए, घोर वेदना पानेवाले भी अवन्ति सुकुमाल ध्यान द्वारा आराधना को प्राप्त हुए । [१६१] जिन्हें सिद्धार्थ (मोक्ष) प्यारा है ऐसे भगवान सुकोसल भी चित्रकूट पर्वत के लिए वाघण द्वारा खाए जाने पर भी मोक्ष को प्राप्त हुए । [१६२] गोकुल में पादपोपगम अनशन करनेवाले चाणक्य मंत्रीने सुबन्धु मंत्री द्वारा जलाए हुए गोबर से जलाने के बाद भी उत्तमार्थ को प्राप्त किया । [१६३] रोहीतक में कुंच राजा द्वारा शक्ति को जलाया गया उस वेदना को याद करके भी उत्तमार्थ (आराधकपन को ) प्राप्त हुए । [१६४] उस कारण से हे धीर पुरुष ! तुम भी सत्त्व का अवलंबन करके धीरता धारण कर और संसार समान महान सागर का निर्गुणपन सोच । [१६५] जन्म, जरा और मरण समान पानीवाला, अनादि, दुःख समान श्वापद (जलचर जीव) द्वारा व्याप्त और जीव को दुःख का हेतुरूप ऐसा भव समुद्र काफी कष्टदायी और रौद्र है । [१६६] मैं धन्य हूँ क्योंकि मैंने अपार भव सागर के लिए लाखों भव में पाने के दुर्लभ यह सद्धर्म रूपी नाव पाई है । [१६७] एक बार प्रयत्न करके पालन किये जानेवाले इसके प्रभाव द्वारा, जीव जन्मांतर के लिए भी दुःख और दारिद्र्य नहीं पाते । [१६८ ] यह धर्म अपूर्व चिन्तामणि रत्न है, और अपूर्व कल्पवृक्ष है, यह परम मंत्र है, और फिर यह परम अमृत समान है । [१६९] अब (गुरु के उपदेश से) मणिमय मंदिर के लिए सुन्दर तरीके से स्फुरायमान जिन गुण रूप अंजन रहित उद्योतवाले विनयवंत ( आराधक) पंच नमस्कार के स्मरण सहित प्राण का त्याग कर दे । [१७०] वो (श्रावक) भक्त परिज्ञा को जघन्य से आराधना करके परिणाम की विशुद्धि द्वारा सौधर्म देवलोक में महर्द्धिक देवता होते है । [१७१] उत्कृष्टरूप से भक्तपरिज्ञा का आराधन करके गृहस्थ अच्युत नाम के बारहवें देवलोक में देवता होते है, और यदि साधु हो तो उत्कृष्टरूप से मोक्ष के सुख पाते है या तो सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न है ।
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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