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________________ २०२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [१२५] अति ऊँचे और घने बादलवाली मेघमाला जैसे हड़कवा के विष को जितना बढाती है उसीतरह अति ऊँचे पयोधर (स्तन) वाली स्त्री पुरुष के मोह विष को बढाती है । [१२६] इसलिए दृष्टिविष सर्प की दृष्टि जैसी उस स्त्री की दृष्टि का तुम त्याग करना; क्योंकि स्त्रीयों के नयनतीर चारित्र समान प्राण को नष्ट करते है । [१२७] स्त्री के संग से अल्प सत्त्ववाले मुनि का मन भी अग्नि से पीगलनेवाले मोम की तरह पीगल जाता है । [१२८] यदि सर्व संग का भी त्याग करनेवाला और तप द्वारा कृश अंगवाला हो तो भी कोशा के घर में बँसनेवाले (सींह गुफावासी) मुनि की तरह स्त्री के संग से मुनि भी चलायमान होते है । [१२९] शृंगार समान कल्लोलवाली, विलास रूपी बाढ़वाली और यौवन समान पानीवाली औरत रूपी नदी में जगत के कौन-से पुरुष नहीं डूबते ? [१३०] धीर पुरुष विषयरूप जलवाले, मोहरूप कादववाले, विलास और अभिमान समान जलचर से भरे और मद समान मगरमच्छवाले, यौवन समान सागर को पार कर गए है। [१३१] करने, करवाने और अनुमोदन रूप तीन कारण द्वारा और मन, वचन और काया के योग से अभ्यंतर और बाहरी ऐसे सर्व संग का तुम त्याग करो । [१३२] संग के (परिग्रह के) आशय से जीव हत्या करता है, झूठ बोलता है, चोरी करताहै, मैथुन का सेवन करता है, और परिमाण रहित मूर्छा करता है । (परिग्रह का परिमाण नहीं करता ।) । [१३३] परिग्रह बड़े भय का कारण है, क्योंकि पुत्र ने द्रव्य चोरने के बावजूद भी श्रावक कुंचिक शेठ ने मुनिपति मुनि को शंका से पीड़ित किया । [१३४] सर्व (बाह्य और अभ्यंतर) परिग्रह से मुक्त, शीतल परीणामवाला और उपशांत चित्तवाला पुरुष निर्लोभता का (संतोष का) जो सुख पाता है वो सुख चक्रवर्ती भी नहीं पाते। [१३५] शल्य रहित मुनि के महाव्रत, अखंड और अतिचार रहित हो उस मुनि के भी महाव्रत, नियाण शल्य द्वारा नष्ट होते है । [१३६] वो (नियाण शल्य) रागगर्भित, द्वेषगर्भित और मोहगर्भित, तीन प्रकार से होता है; धर्म के लिए हीन कुलादिक की प्रार्थना करे उसे मोहगर्भित निदान समजना, राग के लिए जो निदान किया जाए वो राग गर्भित और द्वेष के लिए जो निदान किया जाए उसे द्वेषगर्भित समजना चाहिए । [१३७] राग गर्भित निदान के लिए गंगदत्त का, द्वेषगर्भित निदान के लिए विश्वभूति आदि का (महावीर स्वामी के जीव) और मोह गर्भित निदान के लिए चंडपिंगल आदि के दृष्टांत प्रसिद्ध है । [१३८] जो मोक्ष के सुख की अवगणना करके असार सुख के कारण रूप निदान करता है वो पुरुप काचमणि के लिए वैडूर्य रत्न को नष्ट करता है । [१३९] दुःखक्षय, कर्मक्षय, समाधि मरण और बोधि बीज का लाभ, इतनी चीज की प्रार्थना करनी, उसके अलावा दुसरा कुछ भी माँगने के लिए उचित नहीं है । [१४०] नियाण शल्य का त्याग करके, रात्रि भोजन की निवृत्ति करके, पाँच समिति
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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