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________________ १८६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [१४] जीव अकेला उत्पन्न होता है और अकेला ही नष्ट होता है । अकेले को ही मृत्यु को प्राप्त करता हैं और अकेला ही जीव कर्मरज रहित होकर मोक्ष पाता है (मुक्त होता है ।)। [१५] अकेला ही कर्म करता है, उसके फल को भी अकेले ही भुगतान करता है, अकेला ही उत्पन्न होता है और अकेला ही मरता है और परलोक में उत्पन्न भी अकेला ही होता है । [१६] ज्ञान, दर्शन, लक्षणवंत अकेला ही मेरा आत्मा शाश्वत है; बाकी के मेरे बाह्य भाव सर्व संयोगरुप है । [१७] जिसकी जड़ संयोग है ऐसे दुःख की परम्परा जीव पाता है उन के लिए सर्व संयोग सम्बन्ध को त्रिविधे वोसिराता (त्याग करता) हूँ। [१८] असंयम, अज्ञान, मिथ्यात्व और जीव एवं अजीव के लिए जो ममत्व है उसकी मैं निन्दा करता हूँ और गुरु की साक्षी से गर्दा करता हूँ । [१९] मिथ्यात्व को अच्छे तरीके से पहचानता हूँ । इसलिए सर्व असत्य वचन को और सर्वथासे ममता का मैं त्याग करता हूँ और सर्व को खमाता हूँ। [२०] जो-जो स्थान पर मेरे किए गए अपराध को जिनेश्वर भगवान जानते है, सभी तरह से उपस्थित हुआ मैं उस अपराध की आलोचना करता हूँ । [२१] उत्पन्न यानि वर्तमानकाल की, अनुत्पन्न यानि भावि की माया, दुसरी बार न करूँ उस तरह से आलोचन, निंदन और गर्दा द्वारा उनका मैं त्याग करता हूँ । . [२२] जैसे बोलता हुआ बच्चा कार्य और अकार्य सबकुछ सरलता से कह दे वैसे माया और मद द्वारा रहित पुरुष सर्व पाप की आलोचना करता है । [२३] जिस तरह घी द्वारा सिंचन किया गया अग्नि जलता है वैसे सरल होनेवाले मानव को आलोचना शुद्ध होती है और शुद्ध होनेवाले में धर्म स्थिर रहता है और फिर परम निर्वाण यानि मोक्ष पाता है । [२४] शल्य रहित मानव सिद्धि नहीं पा शकता, उसी तरह पापरूप मैल खरनेवाले (वीतराग) के शासन में कहा है; इसलिए सर्व शल्य उद्धरण करके क्लेश रहित हुआ ऐसा जीव सिद्धि पाता है। [२५] बहुत कुछ भी भाव शल्य गुरु के पास आलोचना करके निःशल्य होकर संथारा (अणशण) का आदर करे तो वो आराधक होता है । [२६] वो थोड़ा भी भाव शल्य गुरु के पास से आलोचन न करे तो अत्यंत ज्ञानवंत होने के बावजूद भी आराधक नहीं होता । [२७] बूरी तरह इस्तेमाल किया गया शस्त्र, विष, दुष्प्रयुक्त वैताल दुष्प्रयुक्त यंत्र और प्रमाद से कोपित साँप वैसा काम नहीं करता । (जैसा काम भाव शल्य से युक्त होनेवाला करता है ।) [२८] जिस वजह से अंत काल में नहीं उद्धरेल भाव शल्य दुर्लभ बोधिपन और अनन्त संसारीपन करता है [२९] उस वजह से गाख रहित जीव पुनर्भव समान लत्ता की जड़ समान एक जैसे
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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